किसी भी पूजन या शुभ कार्य में मंगल कामना के निहितार्थ कलश की बड़ी महिमा बताई गई है। कलश पूजन सुख व समृद्धि को बढ़ाता है। कलश स्थापन में सभी प्रमुख देवी देवताओं का आह्वान किया जाता है। कलश स्थापन की पूरी अनुष्ठानिक प्रक्रिया काफी महत्वपूर्ण और मायने रखती है। तदुपरांत कलश में डाली जाने वाली सामग्री भी इसे अधिक पवित्र बना देती हैं।
कलश में डाली जाने वाली वस्तुएं और उनसे फायदे:-
कलश:-देव पूजन में लिया जाने वाला कलश तांबे या पीतल धातु से बना हुआ होना शुभ कहा गया है। मिट्टी का कलश भी श्रेष्ठ कहा गया है।
पंच पल्लव:-पीपल, आम, गूलर, जामुन, बड़ के पत्ते पांचों पंचपल्लव कहे जाते हैं। कलश के मुख को पंचपल्लव से सजाया जाता है। जिसके पीछे कारण है ये पत्ते वंश को बढ़ाते हैं।
पंचरत्न:-सोना, चांदी, पन्ना, मूंगा और मोती ये पंचरत्न कहे गए हैं। वेदों में कहा गया है पंचपल्लवों से कलश सुशोभित होता है और पंचरत्नों से श्रीमंत बनता है।
जल:-जल से भरा कलश देवताओं का आसन माना जाता है। जल शुद्ध तत्व है। जिसे देव पूजन कार्य में शामिल किए जाने से देवता आकर्षित होकर पूजन स्थल की ओर चले आते हैं। जल से भरे कलश पर वरुण देव आकर विराजमान होते हैं।
नारियल:-नारियल की शिखाओं में सकारात्मक ऊर्जा का भंडार पाया जाता है। नारियल की शिखाओं में मौजूद ऊर्जा तरंगों के माध्यम से कलश के जल में पहुंचती है। यह तरंगें काफी सूक्ष्म होती हैं। नारियल को कलश पर स्थापित करते समय इस बात का ध्यान रखा जाना चाहिए कि नारियल का मुख यजमान की ओर हो।
सोना:-ऐसी मान्यता है कि सोना अपने आस-पास के वातावरण में सकारात्मक ऊर्जा फैलाता है। सोने को शुद्ध कहा जाता है। यही वजह है कि इसे भक्तों को भगवान से जोडऩे का माध्यम भी माना जाता है।
तांबे का पैसा:-तांबे में सात्विक लहरें उत्पन्न करने की क्षमता अधिक होती है। कलश में उठती हुई तरंगे वातावरण में प्रवेश कर जाती हैं। कलश में पैसा डालना त्याग का प्रतीक भी माना जाता है। यदि आप कलश में तांबे के पैसे डालते हैं, तो इसका मतलब है कि आपमें सात्विक गुणों का समावेश हो रहा है।
सात नदियों का पानी:-गंगा, गोदावरी, यमुना, सिंधु, सरस्वती, कावेरी और नर्मदा नदी का पानी पूजा के कलश में डाला जाता है। अगर सात नदियों के जल की व्यवस्था नहीं हो तो केवल गंगा का जल का ही उपयोग करें। यदि वह भी उपलब्ध नहीं हो तो सरलता से जो भी जल प्राप्त हो उसे ही सात नदियों का जल मानकर कलश में भरें।
सुपारी:-यदि हम जल में सुपारी डालते हैं, तो इससे उत्पन्न तरंगें हमारे रजोगुण को समाप्त कर देती हैं और हमारे भीतर देवता के अच्छे गुणों को ग्रहण करने की क्षमता बढ़ जाती है।
पान:-पान की बेल को नागबेल भी कहते हैं। नागबेल को भू लोक और ब्रह्मलोक को जोडऩे वाली कड़ी माना जाता है। इसमें भूमि तरंगों को आकृष्ट करने की क्षमता होती है। साथ ही इसे सात्विक भी कहा गया है।
दूर्वा:-दूर्वा हरियाली का प्रतीक है। कलश में दूर्वा को डाला जाना जीवन में हरियाली यानी खुशियां बढ़ाता है।
कलश पूजन व स्थापना की विधि
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सबसे पहले पूूजन किए जाने वाले स्थान को साफ कर लें। वहां एक लगड़ी का पाटा रखें जिस पर हल्दी और कुमकुम से कोई शुभ मांगलिक चिह्न बनाएं। इस पर लाल रंग का कपड़ा बिछाएं। अब सबसे पहले श्रीगणेश की मूर्ति स्थापित करें। देव स्थापना करें। अब कलश स्थापित करें। दीपक स्थापित करें। इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि कलश देव मूर्ति के दाहिनी ओर स्थापित किया गया हो। कलश की स्थापना चावल या अन्न की ढेरी पर करें।
कलश पूजन के समय इस मंत्र का जप किया जाना चाहिए:-
कलशस्य मुखे विष्णु कंठे रुद्र समाश्रिता: मूलेतस्य स्थितो ब्रह्मा मध्ये मात्र गणा स्मृता:।
कुक्षौतु सागरा सर्वे सप्तद्विपा वसुंधरा,
ऋग्वेदो यजुर्वेदो सामगानां अथर्वणा:
अङेश्च सहितासर्वे कलशन्तु समाश्रिता:।
अर्थात कलश के मुख में संसार को चलाने वाले श्री विष्णु, कलश के कंठ यानी गले में संसार को उत्पन्न करने वाले श्री शिव और कलश के मूल यानी की जड़ में संसार की रचना करने वाले श्री ब्रह्मा ये तीनों शक्ति इस ब्रह्मांड रूपी कलश में उपस्थित हैं। कलश के बीच वाले भाग में पूजनीय मातृकाएं उपस्थित हैं। समुद्र, सातों द्वीप, वसुंधरा यानी धरती, ब्रह्माण्ड के संविधान कहे जाने वाले चारों वेद इस कलश में स्थान लिए हैं। इन सभी को मेरा नमस्कार हैं।
इसके बाद उक्त मंत्रों से वरुण देव को नमस्कार करें:-
ऊँ अपां पतये वरुणाय नम:।
इन मंत्रों के साथ कलश पूजन करें। कलश पर गंध, पुष्प्प और चावल अर्पित करें।
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