मा नो महान्तमुत मा नो अर्भक मा न उक्षन्तमुत मा न उक्षितम्।
मा नो वधी: पितरं मोत मातरं मा न: प्रियास्तन्वो रुद्र रीरिष:।।
ऋग्वेद:-1/8/6/7
भावार्थ:-
मा- मत
न: - हमारे
महान्तम-ज्ञानवृद्ध ,वयोवृद्ध पिता को
उत-और
अर्भकम्-छोटे बालक को
उक्षन्तम्-वीर्य सेचन समर्थ जवान को
उक्षितम्-जो गर्भ में वीर्य सेचन किया है उसको
वधी: - नष्ट करो
पितरम्- पिता को
मातरम्- माता को
प्रिया: - प्रिय
तन्व: - शरीर को
रीरिष: -हिंसा मत करो
व्याख्या:-हे दुष्ट विनाशकेश्वर आप हम पर कृपा करो। हमारे ज्ञानवृद्ध वयोवृद्ध पिता को आप नष्ट मत करो तथा छोटे बालक और जवान तथा जो गर्भ में वीर्य को सेचन किया है उसको विनष्ट मत करो। हमारे पिता,माता और प्रिय शरीर का हिंसन मत करो।
मा नो वधी: पितरं मोत मातरं मा न: प्रियास्तन्वो रुद्र रीरिष:।।
ऋग्वेद:-1/8/6/7
भावार्थ:-
मा- मत
न: - हमारे
महान्तम-ज्ञानवृद्ध ,वयोवृद्ध पिता को
उत-और
अर्भकम्-छोटे बालक को
उक्षन्तम्-वीर्य सेचन समर्थ जवान को
उक्षितम्-जो गर्भ में वीर्य सेचन किया है उसको
वधी: - नष्ट करो
पितरम्- पिता को
मातरम्- माता को
प्रिया: - प्रिय
तन्व: - शरीर को
रीरिष: -हिंसा मत करो
व्याख्या:-हे दुष्ट विनाशकेश्वर आप हम पर कृपा करो। हमारे ज्ञानवृद्ध वयोवृद्ध पिता को आप नष्ट मत करो तथा छोटे बालक और जवान तथा जो गर्भ में वीर्य को सेचन किया है उसको विनष्ट मत करो। हमारे पिता,माता और प्रिय शरीर का हिंसन मत करो।
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