अग्निना रमिमश्नवत्पोषमेव दिवे-दिवे।
यशसं वीरवत्तमन्।।
ऋग्वेद-1/1/1/3
भावार्थ -
अग्निना- हे महादात।
रयिम - विद्या धन, सुवर्ण रत्न तथा चक्रवर्ती राज्य और विज्ञान रूपी धन।
अश्नवत् - प्राप्त होता है।
पोषम् - महापुष्टि करने वाले धन को।
यशसम् - स्त्क्रीर्ति को बढ़ाने वाले धन को।
वीरवत्तमन - विद्या, शौर्य, धैर्य, चातुर्य, बल, पराक्रम, धर्मात्मा, न्याययुक्त ।
व्याख्या - हे महादाता आपकी कृपा से स्तुति करने वाला मनुष्य उस विद्यादि धन तथा सुवर्णादि धन को अवश्य प्राप्त होता है जो धन प्रतिदिन महापुष्टि करने और सत्क्रीति को बढ़ाने वाला तथा जिससे विद्या, शौर्य, धैर्य, चातुर्य, बल, पराक्रम, धर्मात्मा, न्याययुक्त और अत्यंत वीर पुरुष प्राप्त हों, वैसे सुवर्ण रत्नादि तथा चक्रवर्ती राज्य और विज्ञान रूपी धन को मैं प्राप्त होऊं तथा आपकी कृपा से सदैव धर्मात्मा हो के अत्यंत सुखी रहूं।
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