यदड़्ग दाशुषे त्वमग्ने भद्रं करिष्यसि।
तवेत्तत्सत्यमडि़्गर।।
ऋग्वेद:-1/1/1/6
भावार्थ - यद् - जो
अड़्ग - हे मित्र
दाशुषे - आपको आत्मादि दान करता है
त्वम - आप
अग्ने - हे जगदीश्वर
भद्रम - व्यवहारिक और पारमार्थिक सुख
करिष्यसि - देते हो
तव - आपका
इत - अवश्य
तत् - यह
सत्यम् - सत्य व्रत है
अडि़्गर: - हे प्राण मित्र
व्याख्या :- हे मित्र जो आपको आत्मादि दान करता है उसको व्यवहारिक और पारमार्थिक सुख अवश्य देते हो। हे प्राणप्रिय स्वभक्तों को परमानंद देना आपका सत्यव्रत है। यही आपका स्वभाव हमको अत्यंत सुखकारक है। आप मुझको ऐहिक और पारमार्थिक दोनों सुखों का दान शीघ्र दीजिए जिससे सब दु:ख दूर हों तथा हमको सदा सुख ही रहे।
तवेत्तत्सत्यमडि़्गर।।
ऋग्वेद:-1/1/1/6
भावार्थ - यद् - जो
अड़्ग - हे मित्र
दाशुषे - आपको आत्मादि दान करता है
त्वम - आप
अग्ने - हे जगदीश्वर
भद्रम - व्यवहारिक और पारमार्थिक सुख
करिष्यसि - देते हो
तव - आपका
इत - अवश्य
तत् - यह
सत्यम् - सत्य व्रत है
अडि़्गर: - हे प्राण मित्र
व्याख्या :- हे मित्र जो आपको आत्मादि दान करता है उसको व्यवहारिक और पारमार्थिक सुख अवश्य देते हो। हे प्राणप्रिय स्वभक्तों को परमानंद देना आपका सत्यव्रत है। यही आपका स्वभाव हमको अत्यंत सुखकारक है। आप मुझको ऐहिक और पारमार्थिक दोनों सुखों का दान शीघ्र दीजिए जिससे सब दु:ख दूर हों तथा हमको सदा सुख ही रहे।
No comments:
Post a Comment