पाहि नो अग्ने रक्षस: पाहि धूत्तेरराव्ण:।
पाहि रीषत उत वा जिघांसतो वृहद्भानो यविष्ठय।।
ऋग्वेद:-1/3/10/15
भावार्थ :-
पाहि - पालन करो,रक्षा करो
न: - हमारी
अग्ने - हे सर्वशत्रुदाहकाग्ने
रक्षस: - राक्षस, दुष्ट स्वभाव वालों से
रीषत: - मारने वाले मनुष्य से
उत+वा - जो मारने की
जिघांसत - इच्छा करता है
वृहद्भानो - हे महातेज
यविष्ठय - हे बलवत्तम
व्याख्या:- हे सर्वशत्रुदाहकाग्ने परमेश्वर आप राक्षस, हिंसाशील, दुष्ट स्वभाव वाले व धूत्र्त मनुष्यों से हमारी रक्षा करो। जो हमको मारने लगे तथा जो हमें मारने की इच्छा करते हैं उससे हमारी पालना करो। हे बलवत्तम महातेज उससे हमारी रक्षा करो।
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