त्वं सोमासि सत्पतिस्त्वं राजोत वृत्रहा।
त्वं भद्रो असि क्रतु:।।
ऋग्वेद:-1/6/19/5
भावार्थ:-
त्वम् - तुम
सोम - सबका सार निकालने
असि- हो
सत्पति - सत्पुरूषों का पालन करने वाला
राजा - सबके स्वामी
उत - और
वृत्रहा - मेघ के रचक,धारक और मारक
भद्र - भद्र स्वरूप
असि - हो
क्रतु - समस्त जगत के कत्र्ता
व्याख्या:- हे सोम, राजन सत्पते परमेश्वर तुम सबका सार निकाले वाले, प्राप्रस्वरूप, शान्तात्मा हो। तुम सत्पुरुषों का प्रतिपालन करने वाले हो। तुमहीं सबके राजा और मेघ के रचक, धारक और मारक हो। भद्रस्वरूप, भद्र करने वाले और समस्त जगत के कत्र्ता आप ही हो।
त्वं भद्रो असि क्रतु:।।
ऋग्वेद:-1/6/19/5
भावार्थ:-
त्वम् - तुम
सोम - सबका सार निकालने
असि- हो
सत्पति - सत्पुरूषों का पालन करने वाला
राजा - सबके स्वामी
उत - और
वृत्रहा - मेघ के रचक,धारक और मारक
भद्र - भद्र स्वरूप
असि - हो
क्रतु - समस्त जगत के कत्र्ता
व्याख्या:- हे सोम, राजन सत्पते परमेश्वर तुम सबका सार निकाले वाले, प्राप्रस्वरूप, शान्तात्मा हो। तुम सत्पुरुषों का प्रतिपालन करने वाले हो। तुमहीं सबके राजा और मेघ के रचक, धारक और मारक हो। भद्रस्वरूप, भद्र करने वाले और समस्त जगत के कत्र्ता आप ही हो।
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