समस्त साध्ाना और शक्ति का श्रोत हैं मां त्रिपुरासुन्दरी
देवी त्रिपुर सुंदरी, श्री यंत्र तथा श्री मंत्र के स्वरूप से समरसता रखती हैं, जो यंत्रो-मंत्रो में सर्वश्रेष्ठ पद पर आसीन हैं, यन्त्र शिरोमणि हैं, देवी साक्षात् श्री चक्र के रूप में यन्त्र के केंद्र में विद्यमान हैं। माँ अपने तीसरे महाविद्या के रूप में श्री विद्या, महा त्रिपुरसुन्दरी के नाम से जानी जाती हैं। देवी अत्यंत सुन्दर रूप वाली सोलह वर्षीय कन्या रूप में विद्यमान हैं। देवी आज भी यौवनावस्था धारण की हुई है तथा सोलह कला सम्पन्न है। देवी प्रत्येक प्रकार कि मनोकामनाओं को पूर्ण करने में समर्थ हैं। ये ही धन, संपत्ति, समृद्धि दात्री श्री शक्ति के नाम से भी जानी जाती है।
देवी श्री विद्या त्रिपुरसुन्दरी का स्वरूप--
महा शक्ति त्रिपुर सुंदरी, तीनो लोकों में, सोलह वर्षीय कन्या स्वरूप में सर्वाधिक मनोहर तथा सुन्दर रूप से सुशोभित हैं। देवी का शारीरक वर्ण हजारों उदयमान सूर्य के कांति कि भाति है, देवी की चार भुजाये तथा तीन नेत्र हैं। अचेत पड़े हुए सदाशिव के ऊपर कमल जो सदाशिव के नाभि से निकली है, के आसन पर देवी विराजमान हैं। देवी अपने चार हाथों में पाश, अंकुश, धनुष तथा बाण से सुशोभित है। देवी षोडशी पंचवक्त्र है अर्थात देवी के पांच मस्तक या मुख है। चारो दिशाओं में चार तथा ऊपर की ओर एक मुख हैं। देवी के पांचो मस्तक या मुख तत्पुरुष, सद्ध्योजात, वामदेव, अघोर तथा ईशान नमक पांच शिव स्वरूपों के प्रतिक हैं। देवी अपने दस भुजाओ वाली हैं तथा अभय, वज्र, शूल, पाश, खड़ग, अंकुश, टंक, नाग तथा अग्नि धारण की हुई हैं। देवी अनेक प्रकार के अमूल्य रत्नो से युक्त आभूषणो से सुशोभित हैं तथा देवी ने अपने मस्तक पर अर्ध चन्द्र धारण कर रखा हैं। ब्रह्मा, विष्णु, महेश तथा यम देवी के आसन को अपने मस्तक पर धारण करते हैं।
देवी श्री विद्या, स्थूल, सूक्ष्म तथा परा, तीनो रूपों में 'श्री चक्र' में विद्यमान हैं, चक्र स्वरूपी देवी त्रिपुरा, श्री यन्त्र के केंद्र में निवास करती हैं तथा चक्र ही देवी का अराधना स्थल हैं, चक्र के रूप में देवी श्री विद्या की पूजा आराधना होती हैं। श्री यन्त्र, सर्व प्रकार के कामनाओ को पूर्ण करने की क्षमता रखती हैं, इसे त्रैलोक्य मोहन यन्त्र भी कहाँ जाता हैं। श्री यन्त्र को महा मेरु, नव चक्र के नाम से भी जाना जाता हैं। शास्त्रों में यंत्रो को देवताओं का स्थूल देह माना गया हैं। श्री यन्त्र की मान्यता सर्वप्रथम यन्त्र के से भी हैं। यह सर्वरक्षा कारक, सौभाग्य प्रदायक, सर्व सिद्धि प्रदायक तथा सर्वविघ्न नाशक हैं।
कामेश्वरी की स्वारसिक समरसता को प्राप्त परातत्व ही महा त्रिपुर सुंदरी के रूप में विराजमान हैं तथा यही सर्वानन्दमयी, सकलाधिष्ठान ( सर्व स्थान में व्याप्त ) देवी ललिताम्बिका हैं। देवी में सभी वेदांतो का तात्पर्य-अर्थ समाहित हैं तथा चराचर जगत के समस्त कार्य इन्हीं देवी में प्रतिष्ठित हैं। देवी में न शिव के प्रधानता हैं और न ही शक्ति की, अपितु शिव तथा शक्ति, दोनों की समानता हैं। समस्त तत्वों के रूप में विद्यमान होते हुए भी, देवी सबसे अतीत हैं। देवी चर तथा अचर दोनों तत्वों के निर्माण करने में समर्थ हैं तथा निर्गुण तथा सगुण दोनों रूप में अवस्थित हैं।
देवी त्रिपुरसुन्दरी के पूर्व भाग में श्यामा और उत्तर भाग में शाम्भवी विराजित हैं तथा इन्हीं तीन विद्याओं के द्वारा अन्य अनेक विद्याओं का प्राकट्य या प्रादुर्भाव हुआ हैं तथा श्री विद्या परिवार का निर्माण करती हैं।
देवी त्रिपुर सुंदरी, श्री यंत्र तथा श्री मंत्र के स्वरूप से समरसता रखती हैं, जो यंत्रो-मंत्रो में सर्वश्रेष्ठ पद पर आसीन हैं, यन्त्र शिरोमणि हैं, देवी साक्षात् श्री चक्र के रूप में यन्त्र के केंद्र में विद्यमान हैं। माँ अपने तीसरे महाविद्या के रूप में श्री विद्या, महा त्रिपुरसुन्दरी के नाम से जानी जाती हैं। देवी अत्यंत सुन्दर रूप वाली सोलह वर्षीय कन्या रूप में विद्यमान हैं। देवी आज भी यौवनावस्था धारण की हुई है तथा सोलह कला सम्पन्न है। देवी प्रत्येक प्रकार कि मनोकामनाओं को पूर्ण करने में समर्थ हैं। ये ही धन, संपत्ति, समृद्धि दात्री श्री शक्ति के नाम से भी जानी जाती है।
देवी श्री विद्या त्रिपुरसुन्दरी का स्वरूप--
महा शक्ति त्रिपुर सुंदरी, तीनो लोकों में, सोलह वर्षीय कन्या स्वरूप में सर्वाधिक मनोहर तथा सुन्दर रूप से सुशोभित हैं। देवी का शारीरक वर्ण हजारों उदयमान सूर्य के कांति कि भाति है, देवी की चार भुजाये तथा तीन नेत्र हैं। अचेत पड़े हुए सदाशिव के ऊपर कमल जो सदाशिव के नाभि से निकली है, के आसन पर देवी विराजमान हैं। देवी अपने चार हाथों में पाश, अंकुश, धनुष तथा बाण से सुशोभित है। देवी षोडशी पंचवक्त्र है अर्थात देवी के पांच मस्तक या मुख है। चारो दिशाओं में चार तथा ऊपर की ओर एक मुख हैं। देवी के पांचो मस्तक या मुख तत्पुरुष, सद्ध्योजात, वामदेव, अघोर तथा ईशान नमक पांच शिव स्वरूपों के प्रतिक हैं। देवी अपने दस भुजाओ वाली हैं तथा अभय, वज्र, शूल, पाश, खड़ग, अंकुश, टंक, नाग तथा अग्नि धारण की हुई हैं। देवी अनेक प्रकार के अमूल्य रत्नो से युक्त आभूषणो से सुशोभित हैं तथा देवी ने अपने मस्तक पर अर्ध चन्द्र धारण कर रखा हैं। ब्रह्मा, विष्णु, महेश तथा यम देवी के आसन को अपने मस्तक पर धारण करते हैं।
देवी श्री विद्या, स्थूल, सूक्ष्म तथा परा, तीनो रूपों में 'श्री चक्र' में विद्यमान हैं, चक्र स्वरूपी देवी त्रिपुरा, श्री यन्त्र के केंद्र में निवास करती हैं तथा चक्र ही देवी का अराधना स्थल हैं, चक्र के रूप में देवी श्री विद्या की पूजा आराधना होती हैं। श्री यन्त्र, सर्व प्रकार के कामनाओ को पूर्ण करने की क्षमता रखती हैं, इसे त्रैलोक्य मोहन यन्त्र भी कहाँ जाता हैं। श्री यन्त्र को महा मेरु, नव चक्र के नाम से भी जाना जाता हैं। शास्त्रों में यंत्रो को देवताओं का स्थूल देह माना गया हैं। श्री यन्त्र की मान्यता सर्वप्रथम यन्त्र के से भी हैं। यह सर्वरक्षा कारक, सौभाग्य प्रदायक, सर्व सिद्धि प्रदायक तथा सर्वविघ्न नाशक हैं।
कामेश्वरी की स्वारसिक समरसता को प्राप्त परातत्व ही महा त्रिपुर सुंदरी के रूप में विराजमान हैं तथा यही सर्वानन्दमयी, सकलाधिष्ठान ( सर्व स्थान में व्याप्त ) देवी ललिताम्बिका हैं। देवी में सभी वेदांतो का तात्पर्य-अर्थ समाहित हैं तथा चराचर जगत के समस्त कार्य इन्हीं देवी में प्रतिष्ठित हैं। देवी में न शिव के प्रधानता हैं और न ही शक्ति की, अपितु शिव तथा शक्ति, दोनों की समानता हैं। समस्त तत्वों के रूप में विद्यमान होते हुए भी, देवी सबसे अतीत हैं। देवी चर तथा अचर दोनों तत्वों के निर्माण करने में समर्थ हैं तथा निर्गुण तथा सगुण दोनों रूप में अवस्थित हैं।
देवी त्रिपुरसुन्दरी के पूर्व भाग में श्यामा और उत्तर भाग में शाम्भवी विराजित हैं तथा इन्हीं तीन विद्याओं के द्वारा अन्य अनेक विद्याओं का प्राकट्य या प्रादुर्भाव हुआ हैं तथा श्री विद्या परिवार का निर्माण करती हैं।
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