Thursday, June 16, 2016

वेद सार 52

इन्द्रोविश्वस्य राजति। श्ंा नो ऽअस्तु द्विपदे शं चतुष्पदे।।
                                                                       यजुर्वेद:-36/8

भावार्थ:-
इन्द्र-हे इन्द्र आप परमैश्वर्ययुक्त हो
विश्वस्य- समस्त संसार के
राजति-राजा हो,सर्वप्रकाशक हो
शम्-परमसुखदायक
न:-हमलोगों के
अस्तु- हो
द्विपदे- पुत्रादि के लिए
चतुष्पदे-हस्ती,अश्व और गवादि पशुओं के लिए

व्याख्या:-
हे इन्द्र आप परमैश्वर्ययुक्त समस्त संसार के राजा हो,सर्वप्रकाशक हो। हे रक्षक आप कृपा से हमलोगों के जो पुत्रादि हैं उनके लिए परमसुखदायक हो तथा हस्ती,अश्व और गवादि पशुओं के लिए भी परम सुखकारक हो जिससे हमलोगों को सदा आनंद ही रहे।

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