आस्था का दर्द
आस्था का दर्द
होता है   बेदर्द।
करता धड़कनों को सर्द
बनाता है वेपर्द।
आस्था का दर्द
है बड़ी कठिन मर्ज। 
दम भी न लेती,
कहती अभी ठहर।
आस्था का दर्द
काया को देती है कर्ज
कहती मैं हूं मर्द,
तभी तो हूं बेदर्द। 
आस्था का दर्द
करती न कद्र
सब कुछ उड़ा ले जाती
केबल छोड़ती है दर्द।
आस्था का दर्द
अब दर्दें ही करेंगी
आस्था का फैसला ।
जिसमें जितना सब्र होगा 
फायदा वही ले जाऐगा।
आस्था का दर्द
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