Sunday, June 12, 2016

आतंकबाद


आतंकबाद
आतंकवाद की आंधी आई थी
बीते लगभग बरस पचास।
 दुनिया को दी इसने थ्रेटनिंग
 और फैलाया अपना जाल।।
मानव को मानवता भुलव़ाया
सारे विश्‍व को धूल चटाया।
चैन छिनी और खून बहाया
जन जन को खूब कुपित कराया।।
पूरबी हो या पश्चिमी राष्‍ट्र
इससे सब खौफ खाता बेहिसाब।
मकसद चाहे जो भी हो
खून बहाता बेहिसाब ।।
कोई कहता जेहाद
तो कोई कहता जंग।
पर कुछ भी हो
इससे मानव को नहीं है संच।।
जाति धर्म को कमान बनाया
तिनके तिनके को उसमें उलझाया ।
आज हर राष्‍ट्र की मुख्‍य समस्‍या
आतंकवाद का करना सफाया।। 
   

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