श्मशान
यही तो है श्मशान---
बराबर होता जहां सबकी शान
रहे न दंभ और झूठी आन ।
धरा रहे जहां झूठा अभिमान
विलिन होता जहां सब एक समान।
यही तो है श्मशान----। 
पंच तत्व की बनी यह काया 
विखरती है यहीं उसकी छाया। 
यहां नहीं मानवता की माया 
सब कुछ झुठलाती है यहीं
साया। 
यही तो है श्मशान----।
झूठ, फरेबी और मक्कारी 
सबकी होती सहीं खिंचाई । 
मानव ,दानव और प्रकृति 
सब सीखते हैं यहीं सच्चाई।
यही तो है श्मशान---।
सत चित और आनंद 
मिलता है जहां । 
लोभ, मोह और क्षोभ 
जाता है वहां।
यही तो है श्मशान---।।    
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