त्वमस्य पारे रजसो व्योमन: स्व मृत्योजा अवसे घृषन्मन:।
चकृषे भूमि प्रतिमानमोजसोप: स्व: परिभूरेष्या दिवम् ।।
ऋग्वेद:- 1/ 4/ 14/ 12
भावार्थ :-
त्वम-आप
अस्य-समस्त जगत के तथा विशेष हमलोगों के
पारे-पार में तथा भीतर
रजस: - लोक के
व्योमन - आकाश के
स्वभूत्योजा: - अपने ऐश्वर्य और बल से
अबसे-सम्यक रक्षण के लिए
घृषत- घर्षण करते हुए
मन: - दुष्टों के मन को
चकृषे- रचके
भूमिम्- भूमि को
प्रतिमानम् - परिमाण
परिमाण- कर्ता
ओजस:- अपने सामथ्र्य से
अप: - अंतरिक्ष लोक और जल के स्व: - सुख विशेष
परिभू: - सब पर वर्तमान
ऐषि - प्राप्त हो रहे हो
आदिवम् - सूर्यदिलोक के
व्याख्या:-हे परमात्मन, आकाश लोक के पार में तथा भी
परम आकाश भूमि तथा सुख विशेष मध्यस्थ लोक इन सबों को अपने सामथ्र्य से ही रच के यथावत धारण कर रहे हो। सब पर वर्तमान और सब को प्राप्त हो रहे हो। सूर्यलोक, अंतरिक्ष लोक , जल आदि के प्रतिमान कर्ता आप ही हो तथा आप अपरिमेय हो ।
तर अपने ऐश्वर्य और बल से विराजमान होके दुष्टों के मन को घर्षण (तिरस्कार)करते हुए समस्त जगत तथा विशेष हमलोगों के सम्यक रक्षण के लिए आप सावधान हो रहे हो। इससे हम निर्भय होके आनंद कर रहे है।
चकृषे भूमि प्रतिमानमोजसोप: स्व: परिभूरेष्या दिवम् ।।
ऋग्वेद:- 1/ 4/ 14/ 12
भावार्थ :-
त्वम-आप
अस्य-समस्त जगत के तथा विशेष हमलोगों के
पारे-पार में तथा भीतर
रजस: - लोक के
व्योमन - आकाश के
स्वभूत्योजा: - अपने ऐश्वर्य और बल से
अबसे-सम्यक रक्षण के लिए
घृषत- घर्षण करते हुए
मन: - दुष्टों के मन को
चकृषे- रचके
भूमिम्- भूमि को
प्रतिमानम् - परिमाण
परिमाण- कर्ता
ओजस:- अपने सामथ्र्य से
अप: - अंतरिक्ष लोक और जल के स्व: - सुख विशेष
परिभू: - सब पर वर्तमान
ऐषि - प्राप्त हो रहे हो
आदिवम् - सूर्यदिलोक के
व्याख्या:-हे परमात्मन, आकाश लोक के पार में तथा भी
परम आकाश भूमि तथा सुख विशेष मध्यस्थ लोक इन सबों को अपने सामथ्र्य से ही रच के यथावत धारण कर रहे हो। सब पर वर्तमान और सब को प्राप्त हो रहे हो। सूर्यलोक, अंतरिक्ष लोक , जल आदि के प्रतिमान कर्ता आप ही हो तथा आप अपरिमेय हो ।
तर अपने ऐश्वर्य और बल से विराजमान होके दुष्टों के मन को घर्षण (तिरस्कार)करते हुए समस्त जगत तथा विशेष हमलोगों के सम्यक रक्षण के लिए आप सावधान हो रहे हो। इससे हम निर्भय होके आनंद कर रहे है।
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