ब्रह्मंं जज्ञानं प्रथमं पुरस्ताद्विसीमत : सुरूचो वेनऽआव:।
स बुध्न्याऽ३उपमा अस्स विष्ठा : सतश्च योनिसतश्च विन: ।।
यजुर्वेद:- 13/3
भावार्थ :-
ब्रह्म - हे परमेश्वर, आप बड़ों से भी बड़े हो। आपसे बड़ा या आपके तुल्य कोई नहीं है।
जज्ञानम - सब जगत मे व्यापक
प्रथमम् - सब जगत के आदिकरण आप ही हो
पुरस्तात्- पूर्व
सीमत: - विविध सीमा से युक्त सुरुच : - सूर्यादि लोक आपसे प्रकाशित है
वेन: - आनंदस्वरूप कामना करने योग्य
वि-आव : - सब लोकों को विविध नियमों से पृथक - पृथक यथायोग्य वत्र्ता रहे हो
स:- सो ही
बुध्न्या : - अंतरिक्षान्तर्गत दिशादि पदार्थो को
उपमा:- वे अन्तरिक्षादि उपमा
अस्य - इस जगत के
विष्ठा: - निवास स्थल है
सत: - विद्यमान स्थूल जगत की
च- तथा
योनिम- आदिकरण आपको
असत: - अविद्या चक्षुरादि इन्द्रियों से अगोचर इस विविध जगत की
विव: -विभक्त करता है।
व्याख्या :- हे परमेश्वर आप बड़ों से भी बड़े हो। आप से बड़ा या आपके तुल्य कोई नहीं है। आप समस्त जगत मे व्यप्त हो , सब जगत के आदिकारण आप ही हो। सूर्यादि लोक आप ही से प्रकाशित है। इनको पूर्व रच के आप ही धारण करते हो। इन सब लोकों को विविध नियमों से पृथक - पृथक यथायोग्य वत्र्ता रहे हो। आप के आनंद स्वरूप होने से ऐसा कोई जन संसार मे नहीं है जो आपकी कामना न करे। किंतु सब ही आप को मिलना चाहते हंै। तथा आप अत्यंत विद्यायुक्त हो, जब रीति से रक्षक आप ही हो। सो हे परमात्मा अंतरिक्षान्तर्गत दिशादि पदार्थो को विभक्त करता है वह अंतरिक्षादि उपमा सब व्यवहारों मे उपयुक्त होते है। और वे विविध जगत के निवास स्थान हैं।
स बुध्न्याऽ३उपमा अस्स विष्ठा : सतश्च योनिसतश्च विन: ।।
यजुर्वेद:- 13/3
भावार्थ :-
ब्रह्म - हे परमेश्वर, आप बड़ों से भी बड़े हो। आपसे बड़ा या आपके तुल्य कोई नहीं है।
जज्ञानम - सब जगत मे व्यापक
प्रथमम् - सब जगत के आदिकरण आप ही हो
पुरस्तात्- पूर्व
सीमत: - विविध सीमा से युक्त सुरुच : - सूर्यादि लोक आपसे प्रकाशित है
वेन: - आनंदस्वरूप कामना करने योग्य
वि-आव : - सब लोकों को विविध नियमों से पृथक - पृथक यथायोग्य वत्र्ता रहे हो
स:- सो ही
बुध्न्या : - अंतरिक्षान्तर्गत दिशादि पदार्थो को
उपमा:- वे अन्तरिक्षादि उपमा
अस्य - इस जगत के
विष्ठा: - निवास स्थल है
सत: - विद्यमान स्थूल जगत की
च- तथा
योनिम- आदिकरण आपको
असत: - अविद्या चक्षुरादि इन्द्रियों से अगोचर इस विविध जगत की
विव: -विभक्त करता है।
व्याख्या :- हे परमेश्वर आप बड़ों से भी बड़े हो। आप से बड़ा या आपके तुल्य कोई नहीं है। आप समस्त जगत मे व्यप्त हो , सब जगत के आदिकारण आप ही हो। सूर्यादि लोक आप ही से प्रकाशित है। इनको पूर्व रच के आप ही धारण करते हो। इन सब लोकों को विविध नियमों से पृथक - पृथक यथायोग्य वत्र्ता रहे हो। आप के आनंद स्वरूप होने से ऐसा कोई जन संसार मे नहीं है जो आपकी कामना न करे। किंतु सब ही आप को मिलना चाहते हंै। तथा आप अत्यंत विद्यायुक्त हो, जब रीति से रक्षक आप ही हो। सो हे परमात्मा अंतरिक्षान्तर्गत दिशादि पदार्थो को विभक्त करता है वह अंतरिक्षादि उपमा सब व्यवहारों मे उपयुक्त होते है। और वे विविध जगत के निवास स्थान हैं।
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