सा मा सत्योक्ति : परिं पातु विश्वतो द्यावा च यत्र ततनन्न हानि च ।
विश्वमन्यन्निविंशते यदेजति विश्वाहापो विश्वाहोदेति सूर्य: ।।
ऋग्वेद:-7/8/12/2
मा - हमको/ हमारी
सत्योक्ति- सत्य आज्ञा
परिपातु - सर्वथा पालन और सदा पृथक रखें
विश्वत: - सब संसार से और सब दुष्ट कामों से
द्यावा - दिव्य सुख से
च - और
यत्र- जिस दिव्य दृष्टि में
ततनन् - अपने ही विस्तारे हंै
अहानि - सूर्यादिकों को दिवस आदि के होने के निमित्त
विश्वम - सब जगत
अत्यन्त - आपसे अन्य
निविश्ते - आपके सामर्थ से प्रलय में प्रवेश करता है
यद् - जिस समय यह जगत
एजति - चलित होके उत्पन्न होता है
विश्वाहप : -विश्व के हन्ताओं से रक्षा करने वाला
विश्वाहा-जो-जो विश्व का हन्ता
उदेति - आप सब जगत में उदित/
प्रकाशमान हो रहे हो
सूर्य - सूर्यवत् हमारे हदय में प्रकाशित होओ ।
व्याख्या :- हे सर्वभिरक्षकेश्वर। आप की सत्य आज्ञा जिसका हमने अनुष्ठान किया वह हमको सब संसार से सर्वथा पालन और सब दुष्ट कामों से सदा पृथक रखे ताकि कभी हमको अधर्म करने की इच्छा भी न हो और दिव्य सुख से सदा युक्त करके यथावत् हमारी रक्षा करे।
जिस दिव्य सृष्टि में सूर्यादिकों को दिवस आदि होने के निमित्त आपने ही विस्तारे हंै वहां भी हमारा सब उपद्रवों से रक्षण करो।
आप से अन्य सब जगत जिस समय आपके सामथ्र्य से प्रवेश करता है उस समय में भी आप हमारी रक्षा करें। जिस समय यह जगत आप के सामथ्र्य से चलित होके उत्पन्न होता है उस समय भी सब पीडाओं से आप हमारी रक्षा करें।
जो - जो विश्व का हन्ता उसको आप नष्ट कर दो क्योंकि आप के सामथ्र्य में सब जगत की उत्पत्ति स्थिति और प्रलय होता है। आपके सामने कोई राक्षस क्या कर सकता है। क्योंकि आप सब जगत में उदित हो रहे हो। परन्तु सूरर्यवत हमारे हदय में कृपा करके प्रकाशित होओ, जिससे हमारी अविधान्धकारता सब नष्ट हो।
विश्वमन्यन्निविंशते यदेजति विश्वाहापो विश्वाहोदेति सूर्य: ।।
ऋग्वेद:-7/8/12/2
भावार्थ :-
सा - वहमा - हमको/ हमारी
सत्योक्ति- सत्य आज्ञा
परिपातु - सर्वथा पालन और सदा पृथक रखें
विश्वत: - सब संसार से और सब दुष्ट कामों से
द्यावा - दिव्य सुख से
च - और
यत्र- जिस दिव्य दृष्टि में
ततनन् - अपने ही विस्तारे हंै
अहानि - सूर्यादिकों को दिवस आदि के होने के निमित्त
विश्वम - सब जगत
अत्यन्त - आपसे अन्य
निविश्ते - आपके सामर्थ से प्रलय में प्रवेश करता है
यद् - जिस समय यह जगत
एजति - चलित होके उत्पन्न होता है
विश्वाहप : -विश्व के हन्ताओं से रक्षा करने वाला
विश्वाहा-जो-जो विश्व का हन्ता
उदेति - आप सब जगत में उदित/
प्रकाशमान हो रहे हो
सूर्य - सूर्यवत् हमारे हदय में प्रकाशित होओ ।
व्याख्या :- हे सर्वभिरक्षकेश्वर। आप की सत्य आज्ञा जिसका हमने अनुष्ठान किया वह हमको सब संसार से सर्वथा पालन और सब दुष्ट कामों से सदा पृथक रखे ताकि कभी हमको अधर्म करने की इच्छा भी न हो और दिव्य सुख से सदा युक्त करके यथावत् हमारी रक्षा करे।
जिस दिव्य सृष्टि में सूर्यादिकों को दिवस आदि होने के निमित्त आपने ही विस्तारे हंै वहां भी हमारा सब उपद्रवों से रक्षण करो।
आप से अन्य सब जगत जिस समय आपके सामथ्र्य से प्रवेश करता है उस समय में भी आप हमारी रक्षा करें। जिस समय यह जगत आप के सामथ्र्य से चलित होके उत्पन्न होता है उस समय भी सब पीडाओं से आप हमारी रक्षा करें।
जो - जो विश्व का हन्ता उसको आप नष्ट कर दो क्योंकि आप के सामथ्र्य में सब जगत की उत्पत्ति स्थिति और प्रलय होता है। आपके सामने कोई राक्षस क्या कर सकता है। क्योंकि आप सब जगत में उदित हो रहे हो। परन्तु सूरर्यवत हमारे हदय में कृपा करके प्रकाशित होओ, जिससे हमारी अविधान्धकारता सब नष्ट हो।
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