Monday, September 19, 2016

वेद सार-67

तमूतयो रणयञ्छूसातौ तं क्षेमस्य क्षितय: कृ ण्वत त्राम्।
 स विस्वस्य करूणस्येश एको मरुत्वन्नो भवत्विन्द्र ऊती।।

                                                                                     ऋग्वेद:-1/7/4/7

 

भावार्थ :-
तम् - उसी इन्द्र परमात्मा की प्रार्थनादि से
ऊतय: -अनंत रक्षण तथा बलादि गुण
शूरसातों - युद्ध में
रणयन् - रमण और शूरवीरो के गुण
क्षेमस्य- क्षेम कुशलता का
क्षितये :- हे शूरवीर मनुष्यो
त्राम - रक्षक
कृण्वत् - करो
स:- सो
विश्वस्य - सब जगत पर
करूणस्य - करूणामय (करूणा करने वाला)
ईश: - परमात्मा
एक: - एक ही है
मरुत्वान -प्राण,वायु बल सेना युक्त
न: -हमलोगों पर
भवतु - हो
ऊती - रक्षक।

व्याख्या:- हे मनुष्यो उसी इन्द्र की प्रार्थना तथा शरणागति से अपने को अनंत रक्षण तथा बलादि गुण प्राप्त होंगे। वही युद्ध मे अपने को यथावत रमण और रणभूमि मे शूरवीरों के गुण परस्पर प्रीत्यादि प्राप्त करावेगा।
हे शूरवीर मनुष्यो, उसी की प्रार्थना करों जिससे अपनी पराजय कभी ना हो। क्योंकि समस्त जगत का कल्याण करने वाला वही है, दूसरा कोई नहीं है। सो परमात्मा हमलोगो पर कृपा करे और हमारे रक्षक भी हों। जिसकी रक्षा से हमलोग कभी पराजय को न प्राप्त हों ।

No comments:

Post a Comment