Friday, September 23, 2016

वेद सार-70

मा नो वधीरिन्द्र मा परा दा मा न:प्रिया भोजनानि प्रमोषी:।
आण्डा मा नो मघवञ्छक्र निर्भेन्मा न:  पात्रा भेत सहजानुषाणि ।।

                                                                                      ऋग्वेद:-1/7/19/8





भावार्थ :-
मा - मत
न:- हमारा
वधी :- बध कर
इन्द्र - हे परमैश्वरर्ययुक्तेश्वर
परा - अलग
दा :- हो
प्रिया - प्रिय
भोजनानि- भोगो को
प्रमोषी :- चोर और चोरवावो
आण्डा - गर्भो का
मघवन - हे सर्वशक्तिमान
शक्र - समर्थ और पुत्रों का
निर्भेत - विदारण कर
पात्रा - भोजनार्थ सवर्णनादि पात्रों को
भेत-अलग कर / नष्ट करो सहजानुषाणि - सहज अनुषक्त स्वाभाव से अनुकूल मित्र है, उनको ।

व्याख्या :- हे इन्द्र परमैश्वर्ययुक्तेश्वर । हमको आप अपने से अलग मत गिरावें अर्थात हमारा वध मत कर। हमसे अलग आप भी मत हो। हमारे प्रिय भोगों को मत चोर चोरवावें।
हमारे गर्भों का विदारण मत कर । हे मघवन हमारे समर्थ पुत्रों का विदारण मत कर । हमारे भोजनार्थ सुवर्णादि पात्रों को हमसे अलग मत कर । जो जो हमारे सहज अनुषक्त स्वाभाव से अनुकूल मित्र हैं उनको आप नष्ट मत करो अर्थात कृपा करके पूर्वोक्त सब पदार्थो की यथावत रक्षा करो। 

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