Friday, September 9, 2016

वेद सार-65

विजानाह्यार्यान ये च दस्यबो बर्हिष्मते रन्धया शासदव्रतान।
शाकी भव यजमानस्य चोदिता विश्वेत्ता ते सधमादेषु चाकन ।।

                                                                          ऋग्वेद:-1/4/10/8

भावार्थ :- विजानीहि - जानो
आर्यान - विद्या धर्मादि उत्कृष्ट स्वभावचरण युक्त आर्यो को
ये - जो
च- और
दस्यव: -नास्तिक, डाकू, चोर आदि को
बर्हिष्मते - सर्वोपकारक यज्ञ के विध्वंस करने वाले को
रन्धय - मूल सहित नष्ट कर दीजिए  शासद् -यथायोग्य शासन करो
अव्रतान् - ब्रह्मचर्य, गृहस्थ, वानप्रस्थ , सन्यास आदि धर्मानुष्ठान , व्रतरहित, वेदभार्गोच्छेदक, अनाचारी  इनका
शाकी - परमशक्तियुक्त शक्ति देने वाला
भव - हो
यजमानस्य - जीव को
चोदिता - उत्तम कामों में प्रेरणा करने वाला
सधमादेषु - उत्कृष्ट  स्थानों मे   चाकन- कामना करता हंू



व्याख्या:- हे यथायोग्य सबको जानने वाले ईश्वर, आप विद्यादि उत्कृष्ट स्वाभावाचरणयुक्त आर्यो को जानो और जो नास्तिक, डाकू, चोर, विश्वासघाती, मूर्ख, विषयलम्पट, हिसांदि दोषमुक्त, उत्तम कर्म मे विघ्न करने वाले ,स्वार्थी, स्वार्थ साधन में तत्पर,वेद विद्या विरोधी , अनार्य,सर्वोपकारक यज्ञ के विध्वंस करने वाले हैं। इन सब दुष्टों  को आप मूल सहित नष्ट कर दीजिए।
  जीवों को परम शक्ति युक्त शक्ति देने और उत्तम कामों मे प्रेरणा करने वाले हो। आप हमारे दुष्ट कामों से निरोधक हो। मैं भी उत्कृष्ट स्थानो मे निवास करता हुआ तुम्हारी आत्मानुकूल सब उत्तम कर्मों की कामना करता हूं , सो उसे आप पूरा करें ।



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