शं में परस्येंंं गात्राय शमस्त्ववराय मे ।
शं मे चतुभ्र्यो अंगेभ्य: शमस्तु तन्वेे मम।।
अथर्ववेद:-1/12/4
व्याख्या:-- हमारे सिर, उदर आदि अंगों में, दोनो हाथोंं और दोनो पैरों में तथा समस्त शरीर में व्याप्त रोगों का शमन होकर हमें सुख शांति मिले।
निर्लक्ष्म्यं ललाम्यंं निररातिं सुवामसि।
अथ या भद्रा तानि न: प्रजाया अरातिं नयामसि ।।
अथर्ववेद:-1/18/1
व्याख्या:-- बुुरे लक्षणों वाले अशुभ सूचक चिह्न को हम ललाट से दूर करते हैं। जो लाभकारक लक्षण हैं उन्हे अपने लिए और अपनी संतानों के लिए ग्रहण करते हैं तथा कुलक्षणों को हटाते हैं।
शं मे चतुभ्र्यो अंगेभ्य: शमस्तु तन्वेे मम।।
अथर्ववेद:-1/12/4
व्याख्या:-- हमारे सिर, उदर आदि अंगों में, दोनो हाथोंं और दोनो पैरों में तथा समस्त शरीर में व्याप्त रोगों का शमन होकर हमें सुख शांति मिले।
निर्लक्ष्म्यं ललाम्यंं निररातिं सुवामसि।
अथ या भद्रा तानि न: प्रजाया अरातिं नयामसि ।।
अथर्ववेद:-1/18/1
व्याख्या:-- बुुरे लक्षणों वाले अशुभ सूचक चिह्न को हम ललाट से दूर करते हैं। जो लाभकारक लक्षण हैं उन्हे अपने लिए और अपनी संतानों के लिए ग्रहण करते हैं तथा कुलक्षणों को हटाते हैं।