Thursday, December 29, 2016

वेद सार---89

त्‍वमग्‍ने यातुधानानुपबद़धां इहा वह।
अथैषामिन्‍द्रो वज्रेणापि शीर्षाणि वृश्‍चतु ।।
                                 अथर्ववेद –-1/7/7
व्‍याख्‍या—दुष्‍टों को अपने पाश आदि में जकड़कर यहां लाने वाले हे अग्‍ने । इन्‍द्र अपने वज्र के तीव्र प्रहार से उन दुष्‍टों के सिरों को खंड़ विखंड़ करे। 
शं मे परस्‍मै गात्राय शमस्‍त्‍ववराय मे।
शं मे चतुर्भ्‍यो अंगेभ्‍य: शमस्‍तु तन्‍वे मम।    
                               अथर्ववेद –-1/12/4  

व्‍याख्‍या—हमारे सिर, उदर आदि अंगो में, दोनों हाथों और दोनों पैरों में तथा समस्‍त शरीर में व्‍याप्‍त रोगों का शमन होकर हमें सुख शांति मिले।   

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