ये त्रिसप्ता परियन्ति
विश्वा रूपाणि बिभ्रत: ।
वाचस्पतिर्बला तेषां तन्वो
अद्ध दधातु मे।।
अथर्ववेद—1/1/1
व्याख्या—पृथ्वि, जल, तेज, वायु, आकाश, तन्मात्रा और अहंकार – ये
सात पदार्थ और सत्व, रज तथा तम- ये तीन गुण इस प्रकार
जगत में तीन गुणा सात ’इक्कीस ’ देवता सब ओर आवागमन करते हैं। वाणी का स्वामी ब्रह्मा
उनके अद्भुत बल को हमें प्रदान करें।
पुनरेहि वाचस्पते देवेन
मनसा सह।
वसोष्पते नि रमय
मय्येवास्तु मयि श्रुतम।।
अथर्ववेद- 1/1/2
व्याख्या—हे वाणी
के स्वामी परमेश्वर हम और आनंदित हों इसके लिए तुम हमारी कामनाओं को पूर्ण कर और
पढे हुए ज्ञान को धारण करने के निमित्त हमारी बुद्धियों को प्रकाशित करने वाला
हो।
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