Wednesday, December 21, 2016

वेद साार- 85

अपूर्वेणेषिता वाचास्‍ता वदन्ति यथायथम़।
वदन्‍तीर्यत्र गच्‍दन्ति तवाहुर्ब्राह़माणं महत।।
                   अथर्ववेद—  10/8 /34
व्‍याख्‍या—जिस परमात्‍मा से पहले कोई नहीं था , एससे प्ररित वाणियां यथार्थ का वर्णन करती हुई जिस तक पहुंचती हैं वो ही महान ब्रह़म कहलाता है।

अन्‍ततं विततं पुरुत्रानन्‍तमन्‍तवच्‍चा समन्‍ते।
ते नाकपालश्‍चरति विचिन्‍वन विद़वान भूतमुत भव्‍यमस्‍य।।   
                                अथर्ववेद-- 10/8/12

व्‍याख्‍यानेक रूपों मे व्‍याप्‍त, अनन्‍त, सबमें समाया हुआ भूत, भविष्‍य तथा वर्तमान काल के सभी संबंधों को जानता हुआ इस जगत को चलाने वाला परमात्‍मा हैं ।     

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