Saturday, December 3, 2016

वेद सार -83

 इयं वेदि: परो अन्त: पृथिव्या अयं सोमो कृष्णो अश्वस्य रेत:
अयं यज्ञो विश्वस्य भुवनस्य नाभिर्ब्रद्यायं बाच: परमं व्योम ।।
अथर्ववेद :-9/10/14

व्याख्या :- पृथ्वी गोल है। सभी प्राणी सोम अर्थात अन्य आदि के रस से बलवान होते हैं। परमाणुओं के संयोग और वियोग से अथवा आकर्षण - विकर्षण से समस्त संसार एक नाभि में स्थित है। परमेश्वर ही समस्त वाणियों, अर्थात ज्ञान का भंडार है। पृथ्वी के गोल होने की बात वैदिक ऋषि जानते थे।

 सूर्यो द्यां सूर्य: पृथिवीं सूर्य आपोति पश्यति । 
    सूर्यो भूतस्यैकं चक्षुरा रुरोह दिवं महीम्।। 
अथर्ववेद :-13/1/45
व्याख्या :- सूर्य सबको चलाने वाला है। वह परमेश्वर है। वह प्रकाशमान सूर्य, जो सर्वप्रेरक है, सर्वनियामक है, सारी पृथ्वी को, सारे कार्यो को सदैव निहारता रहता है। वह सर्वनियन्ता, समस्त संसार का द्रष्टा, एक नेत्र स्वरूप इश्वर आकाश और धरती पर सबसे ऊंचा है। वह पुरुषोत्तम है। 

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