एषां यज्ञमृत वर्चो ददेऽहं रायस्पोषमुत चित्तान्थग्ने।
सपत्ना अस्मदधरे भवन्तूत्तमं नाकमधि रोहयेयम्।।
अथर्ववेद:-1/9/4
व्याख्या:-- हे तेजस्वी अग्ने तू इस मनुष्य को दु:खरहित श्रेष्ठ स्वर्ग में पहुंचा दे। इसे उत्तम सुख और शांति प्राप्त हो। तेरी कृपा से शत्रु हमारे वश में हो जाएं । हम उनके तेज, धर्म, पुण्यकर्म को स्वीकार करते हैं।
मुंच शीर्षक्तया उत कास एनं परुष्परुराविवेशा यो अष्य।
यो अभ्रजा वातजा यश्य शुष्मो वनस्पतीन्त्सचतां पर्वतांश्च।।
अथर्ववेद:-1/12/3
व्याख्या:-- इस पुरुष के शरीर मे जो सिरदर्द, श्लेष्म, खांसी, वात्, पित्त, कफ और वर्षा, शीत व गर्मी के कारण जो रोग रच - बस गए हैं, हे सूर्य तू उन रोगो का निवारण कर।
सपत्ना अस्मदधरे भवन्तूत्तमं नाकमधि रोहयेयम्।।
अथर्ववेद:-1/9/4
व्याख्या:-- हे तेजस्वी अग्ने तू इस मनुष्य को दु:खरहित श्रेष्ठ स्वर्ग में पहुंचा दे। इसे उत्तम सुख और शांति प्राप्त हो। तेरी कृपा से शत्रु हमारे वश में हो जाएं । हम उनके तेज, धर्म, पुण्यकर्म को स्वीकार करते हैं।
मुंच शीर्षक्तया उत कास एनं परुष्परुराविवेशा यो अष्य।
यो अभ्रजा वातजा यश्य शुष्मो वनस्पतीन्त्सचतां पर्वतांश्च।।
अथर्ववेद:-1/12/3
व्याख्या:-- इस पुरुष के शरीर मे जो सिरदर्द, श्लेष्म, खांसी, वात्, पित्त, कफ और वर्षा, शीत व गर्मी के कारण जो रोग रच - बस गए हैं, हे सूर्य तू उन रोगो का निवारण कर।
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