यज्जाग्रतो दूरमुदैति दैवं तदु सुप्तस्य तथैवैति।
दूरंंगमं ज्योतिषां ज्योतिरेकं तन्मे मन: शिवसंकल्पमस्तु।।
यजुर्वेद:- 34/1
भावार्थ:-
यत- जो
जाग्रत-जागते हुए पुरुष का
दूरम-दूर-दूर
उदैति-आता-जाता है
दैवम- देव
तद-वह मन
उ-निश्चय से
सुप्तस्थ-सोते हुए पुरुष का
तथैव-वैसे ही
एति-जाता-आता है
दूरंगम-दूर जाने का जिसका स्वभाव ही है
ज्योतिषाय्-अग्नि,सूर्यादि,श्रोतादि इन्द्रिय इन प्रकाशकों का भी
एकम-एक बड़ा चंचल वेग वाला
तत्-वह
मे-मेरा
मन:-मन
शिवसंकल्प-धर्म,कल्याण,संकल्पकारी,स्थिर,शुद्ध,धर्मात्मा
अस्तु-आप की कृपा से ही
व्याख्या:-हे धर्म निरुपद्रव परमात्मन् आप की कृपा से मेरा मन सदा धर्म कल्याण संकल्पकारी ही हो। वह कभी भी अधर्मकारी न हो। मन के बिना किसी पदार्थ का प्रकाश कभी नहीं होता। एक बड़ा चंचल वेग वाला मन आपकी कृपा से स्थिर,शुद्ध,धर्मात्मा,विद्यायुक्त हो सकता है। आत्मा का मुख्य साधक भूत,भविष्यत् और वर्तमान काल का ज्ञाता है। वह आपके वश में ही है। उम को आप हमारे वश में यथावत करें जिससे कि हम कुकर्म में कभी नहीं फसें। सदैव विद्या,धर्म और आपकी सेवा में ही रहे।
दूरंंगमं ज्योतिषां ज्योतिरेकं तन्मे मन: शिवसंकल्पमस्तु।।
यजुर्वेद:- 34/1
भावार्थ:-
यत- जो
जाग्रत-जागते हुए पुरुष का
दूरम-दूर-दूर
उदैति-आता-जाता है
दैवम- देव
तद-वह मन
उ-निश्चय से
सुप्तस्थ-सोते हुए पुरुष का
तथैव-वैसे ही
एति-जाता-आता है
दूरंगम-दूर जाने का जिसका स्वभाव ही है
ज्योतिषाय्-अग्नि,सूर्यादि,श्रोतादि इन्द्रिय इन प्रकाशकों का भी
एकम-एक बड़ा चंचल वेग वाला
तत्-वह
मे-मेरा
मन:-मन
शिवसंकल्प-धर्म,कल्याण,संकल्पकारी,स्थिर,शुद्ध,धर्मात्मा
अस्तु-आप की कृपा से ही
व्याख्या:-हे धर्म निरुपद्रव परमात्मन् आप की कृपा से मेरा मन सदा धर्म कल्याण संकल्पकारी ही हो। वह कभी भी अधर्मकारी न हो। मन के बिना किसी पदार्थ का प्रकाश कभी नहीं होता। एक बड़ा चंचल वेग वाला मन आपकी कृपा से स्थिर,शुद्ध,धर्मात्मा,विद्यायुक्त हो सकता है। आत्मा का मुख्य साधक भूत,भविष्यत् और वर्तमान काल का ज्ञाता है। वह आपके वश में ही है। उम को आप हमारे वश में यथावत करें जिससे कि हम कुकर्म में कभी नहीं फसें। सदैव विद्या,धर्म और आपकी सेवा में ही रहे।