Saturday, August 27, 2016

वेद सार -60

पराणुदस्व मघवन्नमित्रान्त्सुवेदा नो वस् कृधि ।
अस्माकं बोध्यविता महाधने भवा वृध: सखीनाम् ।।

                                                       ऋग्वेद :-5/ 3/ 21/ 25

भावार्थ :-
पराणुदस्व - परास्त कर दे
मघवन - हे इन्द्र
अभित्रान् -सब शत्रुओं को
सुवेदा: - सुलभ
न: - हमारे लिए
वसू- समस्त पृथ्वी के धन
कृधि- कर
अस्माकम्-हमारे
बोधि- हमको अपना ही जानो
अविता - रक्षक
महाधने - युद्ध में,
भव- आप ही हो
वृध: - वदर्धक
सखीनाम् - हमारे मित्र और सेनानी के।

व्याख्या :- हे मधवन् इन्द्र आप हमारे समस्त शत्रुओं को परास्त कर दें। हे दात: हमारे लिए समस्‍त पृथ्वी के धन सुलभ करायें । युद्ध मे हमारे और हमारे मित्र तथा सेनानी के आप ही रक्षक, वदर्धक हो । इसलिए हमको अपना ही जानो।
 हे भगवन जब आप हमारे रक्षक योद्धा होंगे तभी हमारी सर्वत्र विजय होगी इसमे संदेह नहीं।  

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