Monday, August 22, 2016

देने वाला बैल वाला

सत्यम् शिवम् सुंदरम् । अर्थात जो सत्य है वही शिव हैं,वही प्रकृति में सबसे सुंदर है। इस संसार में प्रकृति और पुरूष का सम्मिश्रण अर्थात अर्धनारीश्वर स्वरूप के अलावा जानने और समझने के लिए कुछ भी नहीं है। संपूर्ण ब्रह्मांड इसी के चारो ओर घूमती है और इसी के गुरूत्वाकर्षण से अपने केंद्र पर अडिग रहती है। दैहिक, दैविक और भौतिक ताप से युक्त प्राणी को अद्र्धनारीश्वर साम, दाम, दंड और भेद की नीति से संचालित करते हैं। एक दूसरे के प्रति आकर्षण और विकर्षण भी इसी भगवान की देन है। जब ये संयुक्त रूप में नीति का संचालन करते हैं तो आकर्षण होता है और जब अलग-अलग हो जाते हैं तो विकर्षण उत्पन्न होता है। जीवात्मा के अंदर की सकारात्मक और नकारात्मक सोच भी इसी का परिणाम है।
   इंसान चाहता कुछ और है पर पाता कुछ और है। अप्राप्ति की स्थिति में वह और भी मनोयोग पूर्वक अधिक उद्यम करता है। ऐसी स्थिति में उसकी असंतुष्टि, अवसादग्रस्तता और मानसिक तनाव बढ़ता जाता है। कमी न समाप्त होने वाला यह दुश्चक्र सदैव चलता रहता है। ऐसी स्थिति में जीवात्मा एक मात्र भगवान भूतभावन के शरण मेंं ही जाता है। क्योंकि उनका चरित्र है ही बड़े उद्धात किस्म का है। भोलेनाथ ज्ञान, वैराग्य और साधुता के परम आदर्श हैं। इनके समान न तो कोई दाता है,न तपस्वी,न ज्ञानी,न वक्ता, न त्यागी है, उपदेष्टा है और नाहि ऐश्वर्यशाली। वह सभी विद्या से परिपूर्ण हैं। क्योंकि दशो महाविद्याएं तो इन्हीं के अंदर विराजमान हैं। इसीलिए तो जब प्राणी चहुंओर से निराश हो जाता है तो वह भगवान आशुतोष की शरण में पहुंचता है। जहां पहुंचते ही उसके सारे क्लेश दूर हो जाते हैं।
    श्रावण मास में शिव कैलाश से निकलकर विश्व भ्रमण करते हैं। और पूरी दुनियां में जहां-जहां भी उनका प्रतीक लिंग है वहां विराजकर अपने भक्तों की व्यथा सुनकर उनकी पीड़ा को हर उन्हे मनोवांछित वरदान देते हैं। तभी तो श्रावण मास का इंतजार हर कोई करता है। मानो शिव से उनका साक्षात्कार होगा। वह अपने आराध्य को अपनी पीड़ा से अवगत करा उससे मुक्त हो जाएंगे। भक्त सोचते हैं कि हम आस्था और भक्ति रूपी बैंक के ऐसे मैनेजर शिव से मिलेंगे जिन्हे आवेदन देकर हम मन मुताबिक धन राशि, ऐश्वर्य शक्ति आदि प्राप्त कर लेंगे। तभी तो उनकी पूजा और आराधना को जाते वक्त हम कहते हैं 'देने वाला बैल वालाÓ।

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