Thursday, August 25, 2016

भ्रांति,विद्या तथा परम शिव के श्रेष्ठ रूप हैं

भूतों के भाव आदि विकारों से मुक्त रहने के कारण भगवान भोलेनाथ शिव कहे गए हैं। शिव के विष्णु के सानिध्य के कारण ही विष्णु भी शालिग्राम के रूप मे पूजे जाते हैं। इससे इतर कोई भी देवता निराकार रूप मे नहीं पूजे जाते। विष्णु भी जब शिव के साथ विराजते हैं तभी निराकार रूप मे पूजे जाते हैं। शिव तो सदैव निराकार रूप 'लिंगÓ के रूप मे ही पूजे जाते हैं।
 जगत् को जीवन प्रदान करने के गुण से युक्त महादेव को ऋर्षि - मुनियों ने वामदेव भी कहा है। वेद मंत्रो के अधिष्ठाता होने के कारण अघोर एवं समस्त लोकों मे व्याप्त रहने के कारण तत्वपुरुष कहा गया है। तत्वज्ञानी व्यक्ति महेश्वर शिव को 'क्षरÓ और 'अक्षरÓ से परे मानते हैं जिस कारण जीव समस्तप्राणी स्वरूप शिव का स्मरण करके इस पंचतत्व की काया से मुक्त हो जाता है।
 भ्रांति, विद्या तथा पर शिव के श्रेष्ठ रूप हंै। बहुत प्रकार के अर्थो मे विज्ञान को भ्रांति, आत्मरूप से जान लेने को विद्या तथा विकल्परहित तत्व को परम कहा जाता है। शिव का तीसरा अन्य कोई रूप नहीं है। इसीलिए तो लिंग पुराण मे कहा गया है कि 'ऊँ नम: शिवायÓ ही सभी वेदों का सारभूत है।
 बाबा भोलेनाथ हंै ही बड़ी अजीब प्रकृति के। लंकाधिपति रावण कैलास से उन्हे कांधे पर लेकर लंका ले जाने लगे, तैयार हो गए। शर्त पूरा नहीं होने पर देवघर मे स्थापित हो गए । रावण द्वारा तिरस्कार व प्रहार करने के वाबजूद रावण के लिए वचन के अनुसार रावणेश्वर कहलाए । बैजू नामक ग्वाला के कंधे पर रहे और उसकी कर्तव्यनिष्ठा को देखकर उसको वचन दिया और वैद्यनाथ कहलाए। उद्यात स्वाभव होने के कारण भष्मासुर को वरदान दे डाला। इसलिए तो पुराणों मे वर्णित दारूक वन क्षेत्र मे स्थित देवाधिदेव का यह लिंग कामना लिग के रूप मे विख्यात हुआ। यहां हरेक लोगो की मनोकामना पूरी होती है। इसका साक्षात उदाहरण यहां रह रहे धरनटिया व हर साल बाबा के दरबार मे आने वाले शिवभक्तों की संख्या है। विश्व के किसी भी क्षेत्र मे एक महीने तक लगातार इतनी संख्या मे किसी भी धर्म स्थल मे भक्त नहीं पहंचते । यहां बाबा मंदिर पर पंचशूल विराजमान है जो अलौकिक शक्ति का केंद्र है। यही से शुरू होती है वैदिक मंत्र का साधना। इसीलिए तो लिंग पुराण मे साक्षात शिव ने पार्वती से कहा है कि जो भी जीव इस स्थान मे भक्ति भाव से मेरी पूजा करता है वह मेरे साथ आनंद करता है। शिव के 12 लिंगों मे से किसी एक की भी जो गाय के घी से स्नान करा षोडषोपचार विधि से पूजा करता है वह अपने परिजनों समेत यज्ञों का फल प्राप्त कर लेते हैं।
 इसलिए तो पुराणों मे कहा गया है "य इदं परमाख्यानं पुण्यं वैदे:  समन्वितम् पवित्वा श्रृणुते चैव सर्वदु:खविनाशनम्।।"
                

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