Friday, August 12, 2016

सरहद का शतरंज

जंगे आजादी के दिनों से ही
दोनों खानों में गोटियां सजी है।
एक पासे पर पांडव
तो दूसरे पर शकुनी सहित कौरव हैं।।
      नेहरू उलटे जो जिन्ना पलटे
       गांधी ने ह्वीसिल बजाई है।
      अखंड भारत की अस्मत हेतु
      बरबस युद्धक नाच नचाई है।।
भारत का बंटवारा सुझाई
दो पृथक राष्ट्र बना दिया भाई।
कौमो ने भुलवाई
धर्म और मानवता भाई।।
     जो साथ बढ़े, सो हाथ लड़े
    अपने मुल्क में ही बेघर हुए।
    अपनों ने ही इज्जत लूटी
    खून से भी प्यास न बुझी।।
कोई चैन से रहे
तो कोई मुहाजिर बने।
कोई दिनों-दिन बढ़े
तो कोई जुल्म सहे।।
   हमने दिया उनको मान-सम्मान
  लेकिन उसने किया बरबस अपमान।
  कारण ! उसे है झूठा अभिमान
  इसीलिए तो जंग को समझता है आसान।।
सन सैंतालिश की त्रासदी हो, सा पैंसठ का जंग
सन इकहत्तर का आक्रमण हो, या नीनानवे का जंग।
भारतीय जवानों ने किया उसका सपना भंग
सरहद पर बिखर गया उसका शतरंज।।

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