Saturday, August 13, 2016

हिन्दो-कि-स्तान

दिलों की नफरत से
नासमझी की बू पनपी थी।
बांटो और राज करो
गोरो की यह सूक्ति थी।।

भोली-भाली जनता प्यारी
समझ न सकी रहनुमाई।
अपनें अहं की पूर्ति हेतु
रहनुमाओं ने द्विराष्ट्र व्यवस्था अपनाई।।

सन छियालिस की सीधी कार्यवाई नें दो दिलों में नफरत जगाई।
सन सैंतालिश की आजादी ने मानवता की रंज दिखलाई।।

गोरे तो चले गए
पर बोए उसने ऐसे नासूर।
कि, जब तक रहेगा हिन्दो- कि- स्तान
शायद कटते रहेंगे सपूत महान।।

सन पैंसठ का जंग हो
या इकहत्तर का रंज।
मिलेनियम में भी हमारे सपूतों ने उन्हे किया बेदम।।

पर, हार हो या मार
स्तान को अहं है बेसुमार।
क्योंकि, वह जनता ही नहीं प्यार
उसे तो चाहिए बरबस फटकार।।

कौन होगा वह रहनुमा
जिसे दूर दृष्ट्रि भाएगी।
तब ईश्वर और अल्ला होंगे एक
और गॉड को भी नींद आएगी।।

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