श्रृष्टि के उद्भव से
बात ये सामने आई।
करो वंदन कामदेव की
यही है सच्चाई।
भोग की परायणता है
रसास्वादता काम का।
घट-घट कर पीले हे बंदे
यही परायणता है काम का।
सत,रज और तम हैं
काम के वाण।
सत् चित और आनंद से
सुशोभित करता है प्राण।।
पौरुष में जंभाई भरता
बढ़ाने को श्रृष्टि का काम।
तब रति का समर्पण ही
फैलाता जग में अपना नाम।।
हे रति, तुम परायणा रहना
बरबस वंदन करना काम की।
हे कामदेव,तुम भी समर्पित रहना
रति के दामन प्राण की।।
बात ये सामने आई।
करो वंदन कामदेव की
यही है सच्चाई।
भोग की परायणता है
रसास्वादता काम का।
घट-घट कर पीले हे बंदे
यही परायणता है काम का।
सत,रज और तम हैं
काम के वाण।
सत् चित और आनंद से
सुशोभित करता है प्राण।।
पौरुष में जंभाई भरता
बढ़ाने को श्रृष्टि का काम।
तब रति का समर्पण ही
फैलाता जग में अपना नाम।।
हे रति, तुम परायणा रहना
बरबस वंदन करना काम की।
हे कामदेव,तुम भी समर्पित रहना
रति के दामन प्राण की।।
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