Tuesday, August 30, 2016

देवी देवताओं के रंगों का स्वरूप

हिन्दू देवताओं में रंगों के चुनाव का निश्चित तौर पर मनोवैज्ञानिक सांकेतिक अर्थ है। इन रंगों में कुछ की स्वास्थ्य, दीर्घजीवन, और धर्म की दृष्टि से विशेष उपयोगिता है। विविध रंग हमारे दैनिक जीवन मे उपयोगिता के साथ साथ नव स्फूत्र्ति, सुन्दरता और कल्याण का संदेश देते है। रंगो का स्वास्थ और मन पर प्रवल प्रभाव पड़ता है। रंगो के आकर्षक वातावरण में मन आह्लादित रहता है और निराशा भागती है। धार्मिक कार्यो में रोली का लाल, हल्दी का पीला, पत्तियों का हरा, आटे का सफेद रंग प्रयोग में लाया जाता है। यह हमारे लिए स्वास्थदायक, स्फूत्र्तिदायक और कल्याणकारी होता है।

रंगों में छिपा है कल्याण और सुन्दरता का संदेश:-
प्राचीन काल से वर्तमान काल तक हमारे धर्म तथा समाज मे रंगों का सम्मिश्रण नये रूपों मे होता रहा है। एक ओर रंग जहां हमारे यहां सौन्दर्य प्रसाधनों के विविध रूपों में प्रयुक्त हुए हैं। वहीं ये धर्म में निहित उपयोगी तथ्यों को भी जनमानस तक पहुंचाते रहे हैं। विज्ञान के अनुसार सभी रंग सूर्य की किरणों के प्रभाव से बनते हैं। सूर्य की छत्रछाया मे नाना प्रकार की वनस्पतियां तथा जीवधारी जैसे पनपते हैं उसी प्रकार हरा,लाल और नीला रंग मनुष्य को स्वस्थ,यशस्वी और गौरवशाली बनाने वाले हैं। लाल रंग सौभाग्य का चिन्ह है तो हरी रंग शुभकामना व्यक्त करता है।

लाल रंग में सर्वाधिक धार्मिकता:- 
  हिन्दू धर्म मे लाल रंग का सर्वाधिक महत्व स्वीकार किया गया हैे। अधिक से अधिक मंगल कार्यो मे इसका उपयोग होता है। प्राय: सभी देवी देवताओं की प्रतिमा को लाल रंग का टीका लगाया जाता है। लाल चंदन चंद्रमा  का परिचायक है। लाल टीका शौर्य एवं विजय का प्रतीक है। लाल रंग मनुष्य के शरीर को स्वस्थ एवं मन को हर्षित करने वाला है। उत्तम स्वास्थ्य और शक्ति गुलाबी आभायुक्त रंग से प्रकट होता है। लाल रंग नारी की मर्यादा की रक्षा भी करता है और यह उसके सौभाग्य का प्रतीक भी है। इसीलिए हिन्दू तत्वदर्शियों ने सिंह वाहिनी मां दुर्गा को लाल, ऐश्वर्य वाहिनी लक्ष्मी को लाल, पौरूष व आत्मगौरव के प्रतीक हनुमान को लाल रंग से सुसज्जित किया है।

भगवा रंग त्याग तपस्या और वैराग्य का प्रतीक:-
भगवा रंग अग्नि की ज्वाला का रंग है। सनातन धर्म मे इस रंग को साधुता,पवित्रता,शुचिता,स्वच्छता और परिष्कार का द्योतक माना गया है। यह रंग अध्यात्मिक प्रकाश का रंग है जिसमें धार्मिक ज्ञान, तप, संयम और वैराग्य की अनुभूति होती है। इसीलिए अग्नि और सूर्य देव सहित ऋषियों-मुनियों, संतों की प्रतिमा मे इस रंग का उपयोग किया जाता है।

हरा रंग आध्यात्मिक प्रेरक वातावरण का प्रतीक:-
हरा रंग समग्र प्रकृति मे व्याप्त है। यह मन को शांति और हृदय को शीतलता प्रदान करता है। यह नेत्रों को प्रिय लगता है। इससे मन संतुलित और प्रसन्न रहता है। ऋषि-मुनीयों ने अपनी आध्यात्मिक उन्नति ऊँचे पर्वत - शिखरों, घास के मैदानों, सरिताओं आदि के तटों पर की है। लक्ष्मी जी को नेत्र सुखदायक हरे रंग से विभूषित किया है। लाल और हरे रंग से लक्ष्मी जी की सात्विकता, जितेन्द्रियता, सत्यपरायणता, कल्याणकामय और सौभाग्य को स्पष्ट किया गया है। यही कारण है की लक्ष्मी जी उन्हीं पुरुष श्रेष्ठों के पास रहती है जो उद्योगी परिश्रमी , स्फूत्र्तिदायक और आत्मश्विासी हैं।

पीला रंग ज्ञान, विद्या और विवेक का प्रतीक:-
शांति, अध्ययन, विद्वता , योग्यता, एकाग्रता और मानसिक बौद्धिक उन्नति का प्रतीक है। यह रंग  मस्तिष्क को प्रफुल्लित करता है। यह बसंती रंग है तभी तो इसे ऋतुराज कहा गया है। जो मन को आनंदित और उद्धेलित करने वाला ऋतु है। भगवान विष्णु व देव गुरु वृहस्पति सहित कई देवों, दिक्पाल देवताओं आदि के वस्त्रों का रंग पीला है जो उनके असीम ज्ञान का द्योतक है।

नीले रंग में बल और पौरूष का संदेश:-
सृष्टिकर्ता ने प्रकृति मे नीला रंग सबसे अधिक रखा है। हमारे सिर के उपर आकाश और सृष्टि मे समुद्र तथा सरिताओं का वर्ण नीला रखा है। मनोविज्ञान के अनुसार नीला रंग बल पौरूष और वीर भाव का प्रतीक है। जिस देवी, देवताओं, ग्रहों, महापुरुषों में जितना ही अधिक बल पौरूष है, दृढता,साहस, शौर्य है, कठिन से कठिन परिस्थितियों मे निरंतर सत्य, नीति धर्म के लिए संघर्ष करने की योग्यता है,वचनों में स्थायित्व है,संकल्पशक्ति और धीरता है उसे उतने ही नीले रंग से चिह्नित किया गया है। मर्यादा पुरूषोत्तम श्रीराम , लीला पुरुष श्रीकृष्ण,देवाधिदेव महादेव सहित कई देवी-देवताओं को इसी रंग से चिह्नित किया गया है।

सफेद रंग पवित्रता,शुद्धता,विद्या और शांति का प्रतीक:-
श्वेत रंग सातो रंगो के सम्मिश्रण से बना है। सूर्य की सफेद रश्मि को तोडऩे पर उससे सभी रंग प्रकट हो जाते हैं। इससे मानसिक, बौद्धिक और नैतिक स्वच्छता प्रकट होती है। ज्ञान और विद्या का रंग सफेद है क्योंकि जो विद्या के पुजारी हैं उनमें किसी प्रकार का कल्मष नहीं ठहर सकता है। इसीलिए तो विद्या की अधिष्ठात्री देवी सरस्वती और श्रृष्टिकर्ता ब्रह्मा के चित्र को सफेद रंग से चित्रित किया गया है।
 इस प्रकार देवी- देवताओं का वर्ण तथा उनके वस्त्राभरणोंं एवं अलकारों का जो विभिन्न रंग है वह विशिष्ट शक्तियों का प्रतीक है तथा उनकी उपासना मे तदर्थ रंगों के पवित्र पदार्थो का उपयोग उनकी शीघ्र अनुकंपा प्राप्ति मे सहायक हो सकता है।

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