Wednesday, August 24, 2016

भगवान शिव का पार्थिव लिंग


समस्त देवों मे  एक मात्र महादेव ही ऐसे हैं जिनकी आराधना, उपासना और पूजा कि पद्धति सबसे सरल है। इसीलिए तो भोलेनाथ की आराधना जहां चाहें, जब चाहे, जिस मन से चाहे कर सकते हैं। शिव पुराण  अनुसार भगवान चन्द्रमौलेश्वर केवल पंचाक्षर मंत्र से ही वशीभूत हो साधकों को अनुग्रहित कर देते हैं। वही स्कंद पुराण के अनुसार विभिन्न भावों के अनुसार शिव के विभिन्न लिंगो की पूजा के लिए विविध विधान बताए गए है। लिंग की पूजा से ही एक साथ उमा महेश्वर की पूजा हो जाती है। इन्हीं लिंगों मे से एक है पार्थिव लिंग। रूद्र संहिता मे कहा गया है कि पार्थिव पूजन कभी व्यर्थ नहीं हो सकता। पार्थिव लिंग के लिए गंगा की मिट्टी सबसे शुद्ध और पवित्र मानी जाती है।
 स्कंद पुराण के अनुसार 'ऊँ हराय नम:Ó इस मंत्र से मिट्टी लेकर 'ऊँ महेश्वराय नम:Ó मंत्र से अंगूठे के पोर भर का लिंग बनाना चाहिए। इसे तीन भागों मे बांट दें। इसके उपरी भाग को लिंग, मध्य भाग को गौरी पीठ और नीचले भाग को वेदी कहते हैं। लिंग दोनो मे से किसी एक ही हाथ से बनाना चाहिए। तदुपरांत शिव का पार्थिव लिंग के रूप मे ध्यान कर षोडशोपचार विधि से विल्व पत्र के साथ मस्तक पर भस्म और गले मे रूद्राक्ष की माला धारण कर पूजा करनी चाहिए। पार्थिव लिंग की पूजा उपरोक्त इच्छा से इस प्रकार कि जाए तो विशिष्ट फल कि प्राप्ति अवश्य होती है।
विभिन्न प्रकार की कामनाओं के लिए निम्न प्रकार से पार्थिव लिंग के पूजन का विधान है। विद्यार्थी - 1000, धन के इच्छुक - 500 , पुत्र के इच्छुक - 1500 , वस्त्र के इच्छुक - 500 , मोक्ष के इच्छुक - 10,000,00 , भूमि के इच्छुक - 1000 , दया के इच्छुक - 3000 , तीर्थ के इच्छुक - 2000  पार्थिव लिंग की पूजा करनी चाहिए। वहीं शिवलिंग के उपर सांगोपांग पूजा से राज्य प्राप्ति, रोग मुक्ति हेतु 50 कमल पुष्प, विद्या प्राप्ति के लिए घृत , आयु के इच्छुक 1 लाख दुर्वा, पुत्र के इच्छुक 1 लाख धतुरे के पुष्प, वस्त्र व संपति के लिए 1 लाख कनेर का पुष्प , लक्ष्मी प्राप्ति के लिए अक्षत, महापाप से मुक्ति हेतु 1 लाख दाना तील, स्वर्ग समान सुख प्राप्ति के लिए 1 लाख दाना जौ, ज्वर शांति के लिए जलधारा प्रवाहित करने का विधान है।
 शिव पुराण मे शिव ने स्वयं पार्वती से कहा है जिस किसी  की भी जिह्वा के अग्रभाग मे सदा भगवान भोलेनाथ का दो अक्षरों वाला नाम शिव विराजमान रहता है धन्य है वह महात्मा। आज भी जिन्होंने पार्थिव पूजन के बाद शिव के इस अभिनाशी नाम का उच्चारण किया है। वह निश्चय ही मनुष्य रूप मे रूद्र है। उस महात्मा के चहुं ओर शिव शूलपाणी के रूप मे विराजमान रहते हैं

    

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