Wednesday, August 31, 2016

वेद सार-62

नेह भद्रं रक्षस्विने नावयै नोपया उत । 
गवे च भद्रं धेनवे वीराय च श्रवस्यते ऽ नेहसो ऊतय: सु ऊतय: ।।
                                                                   ऋग्वेद:-6/4/9/12

 

भावार्थ :- न- मत
इह- इस संसार में
भद्रम - सुख
रक्षस्विने - पापी , हिंसक , दुष्टत्मा को
अवयै -धर्म से विरीत चलने वाले को
उपयै-अधर्मी के समीप रहने वाले और उसके सहायक को भी
उत - तथा
गवे - शमादमादियुक्त इंन्द्रियों के लिए
च -और
धेनवे - दुग्ध देने वाली गौ आदि के लिए
वीराय - वीरपुत्र के लिए
श्रवस्यते - विद्या, विज्ञान, अज्ञाद्यैश्वर्य युक्त हमारे देश के राजा घनाढ््य जन के लिए
अनेहस : - निष्पाप निरूपद्रव स्थिर दृढ़ सुख
व: - आप
ऊतय: - सर्वरक्षकेश्वर
सुऊतय: - सर्वरक्षण
व: - पूर्वोक्त धर्माात्माओ की
ऊतय:- रक्षा करने वाले हैं।

व्याख्या :- हे भगवन। पापी, हिंसक दुष्टात्मा को इस संसार मे सुख मत देना । धर्म से विपरीत चलने वाले को सुख कभी मत हो तथा अधर्मी के समीप रहने वाले उसके सहायक को भी सुख नहीं हो। ऐसी प्रार्थना है आपसे हमारी कि दुष्ट को सुख कभी नहीं होना चाहिए। नहीं तो कोई जन धर्म मे रूचि नहीं करेगा। किन्तु इस संसार मे धर्मात्माओं को ही सुख दीजिए। हमारी शमदमादियुक्‍त इन्द्रियां, दुग्ध देने वाली गौ आदि वीरपुत्र, और शूरवीर भृत्य , विद्या ,विज्ञान और अन्नाद्यैश्वर्युक्त हमारे देश के राजा और घनाढ्य जन तथा इनके लिए निष्पाप निरूपद्रव स्थिर दृढ़ सुख हो ।
हे सर्वरक्षकेश्वर। आप सर्वरक्षक, अर्थात पूर्वोक्त सब धर्मात्माओं की रक्षा करने वाले हो।  जिनके आप रक्षक हो उनको सदैव भद्र कल्याण प्राप्त होता है, अन्य को नहीं।

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