Monday, February 1, 2016

वेद सार 12

यां मेधां देवगणा: पितरश्चोपासते।
तथा मामद्य मेधयाग्ने मेधाविनं कुरु स्वाहा।।
                 यजुर्वेद:-32। 14
भावार्थ:-
याम्-जिस
मेधाम्-यथार्थ धारणा वाली बुद्धि को
देवगणा:-विद्वानों के पितर
च-तथा, उपासते-धारण करते हैं
तया-उससे, माम्-मुझको
अद्य-इसी समय, मेधया-बुद्धि के साथ
अग्ने-हे सर्वज्ञाग्ने परमात्मन्
मेधाविनम्-मेधावी
कुरु-कर, स्वाहा-इस।

व्याख्या:-हे सर्वज्ञाग्ने परमात्मन् जिस विज्ञानवती यथार्थ धारणावाली बुद्धि को विद्वानों के पितर धारण करते हैं तथा यथार्थ पदार्थ विज्ञान वाले पितर जिस बुद्धि के उपाक्षित होते हैं उस बुद्धि के साथ इसी समय कृपा से मुझको मेधावी करें। इसको आप अनुग्रह और प्रीति से स्वीकार कीजिए जिससे मेरी सारी जड़ता दूर हो।

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