
सोमं गीर्भिष्टवा वयं वद्र्धयामो वचोविद:।
सुमृलीको न आविश।।
ऋग्वेद -1/6/21/11
भावार्थ:-
सोम-हे सर्वजगदुत्पादकेश्वर
गीर्भि:-स्तुति समूह से
त्वा-आपको
वयम्-हमलोग
वद्र्धयाम:-सर्वोपरि विराजमान मानते हैं
वचोविद:-शास्त्रवित् हम लोग
सुमृलीको-सुन्दर सुख देने वाले
न:-हमको
आविश-आप आवेश(चार्ज) करो।
व्याख्या:-हे सर्वजगदुत्पादकेश्वर आपको शास्त्रवित् हमलोग स्तुतिसमूह से सर्वोपरि विराजमान मानते हैं। क्योंकि हमको सुन्दर सुख देने वाले आप ही हो। इसलिए कृपा करके हमको आप आवेश करो जिससे हमलोग अविद्या के अंधकार से छूटकर विद्यासूर्य को प्राप्त होके आनंदित हों।
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