नम: शम्भवाय च मयोमाय च नम: शंकराय च मयस्कराय च। नम: शिवाय च शिवतराय च ।।
यजुर्वेद :-26/16/41
भावार्थ :-
नम: - नमस्कार है
शंभवाय - कल्याण स्वरूप
और मोक्षसुख के करने वाले को
च - और
मयोभवाय - सांसारिक सुख के करने वाले को
शंकराय - जीवों के कल्याण करने वाले को
मयस्कराय - मन, इंद्रिय, प्राण और आत्मा को सुख करने वाले को
शिवाय - मंगलमय को
शिवतराय - अत्यंत कल्याण स्वरूप और कल्याण कारक को
व्याख्या :- हे कल्याण स्वरूप आप सुख स्वरूप और मोक्ष सुख को प्रदान करने वाले हो। आपको नमस्कार है। आप सांसारिक सुख देने वाले हो, आपको नमस्कार है। आप से ही जीवों का कल्याण होता है, अन्य से नहीं। आप ही मन, इंद्रिय, प्राण और आत्मा को सुख प्रदान करने वाले हो। आप अत्यंत कल्याण स्वरूप और कल्याणकारक हो इसलिए आपको हमलोग बारंबार नमस्कार करते हैं।
श्रद्धा और भक्ति से जो भी मनुष्य ईश्वर को प्रणाम करता है उसका सदैव मंगलमय ही होता है।
यजुर्वेद :-26/16/41
भावार्थ :-
नम: - नमस्कार है
शंभवाय - कल्याण स्वरूप
और मोक्षसुख के करने वाले को
च - और
मयोभवाय - सांसारिक सुख के करने वाले को
शंकराय - जीवों के कल्याण करने वाले को
मयस्कराय - मन, इंद्रिय, प्राण और आत्मा को सुख करने वाले को
शिवाय - मंगलमय को
शिवतराय - अत्यंत कल्याण स्वरूप और कल्याण कारक को
व्याख्या :- हे कल्याण स्वरूप आप सुख स्वरूप और मोक्ष सुख को प्रदान करने वाले हो। आपको नमस्कार है। आप सांसारिक सुख देने वाले हो, आपको नमस्कार है। आप से ही जीवों का कल्याण होता है, अन्य से नहीं। आप ही मन, इंद्रिय, प्राण और आत्मा को सुख प्रदान करने वाले हो। आप अत्यंत कल्याण स्वरूप और कल्याणकारक हो इसलिए आपको हमलोग बारंबार नमस्कार करते हैं।
श्रद्धा और भक्ति से जो भी मनुष्य ईश्वर को प्रणाम करता है उसका सदैव मंगलमय ही होता है।
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