Friday, February 19, 2016

वेद सार 20


सोमं रारन्धिनो हृदि गावो न यवसेष्वा।।
मर्य इव स्व ओक्ये।।
                                      ऋग्वेद:-1/6/21/13

भावार्थ :- 
सोम - हे सोम्य सौख्यप्रदेश्वर
रारन्धि - रमण करो
न: - हमारे
हृदि - हृदय में
गाव: - सूर्य की किरण, विद्वानों का मान, गाय पशु
न - जैसे
यवसेषु - अपने-अपने विषय और घास आदि में
आ - यथावत्
मर्य - मनुष्य
इव - जैसे
स्वे - अपने
ओक्ये - घर में

व्याख्या :- हे सोम्य सौख्यप्रदेश्वर जैसे सूर्य की किरण, विद्वानों का मन और गाय पशु अपने-अपने विषय और घास आदि में रमण करते हैं उसी प्रकार आप कृपा कर हमारे हृदय में रमण करो। ।
 जैसे मनुष्य अपने घर में रमण करता है वैसे ही आप सदा प्रकाश युक्त हमारे हृदय में रमण कीजिए। जिससे हमको यथार्थ सर्वज्ञान और आनंद हो।


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