Tuesday, February 2, 2016

व़ेद सार 13


मेधां मे वरुणो ददातु मेधामग्नि: प्रजापति:।
मेधामिन्द्रश्च वापुश्चं मेधां ददातु मे स्वाहा।।
                                       यजुर्वेद:- 32। 15
भावार्थ:-
मेधाम्-सर्वविद्यासम्पन्न बुद्धि
मे-मुझको, वरूण:-वरणीय आनंदस्वरूप
ददातु-कृपा से दीजिये अग्नि:-विज्ञानमय विज्ञानप्रद प्रजापति:-सब संसार के अधिष्ठाता पालक
इन्द्र-परमैश्वर्यवान्, च-तथा वायु-विज्ञानमय अनंतबल
मेधा-बुद्धि, ददातु-दीजिये।

व्याख्या:-हे सर्वोत्कृष्टेश्वर आप आनंद स्वरूप हो। कृपा कर आप मुझको सर्वविद्या संपन्न बुद्धि दीजिये। हे विज्ञानमय, विज्ञानप्रद प्रजापति, समस्त संसार के अधिष्ठाता आप मुझको अत्युत्तम बुद्धि दीजिए।

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