Tuesday, February 23, 2016

वेद सार 22

इदं मे ब्रह्म च क्षत्रं चोभे श्रियमश्नुताम्।
मयि देवा दधतु श्रियमुत्तमां तस्यै ते स्वाहा।।
                                             यजुर्वेद:-55/32/16

भावार्थ:-
इदम्-यह
मे-मेरा
ब्रह्म-विद्वान
च-और
क्षत्रम्-राजा
उभे-दोनो
श्रियम्-सर्वोत्तम विद्यादि लक्षण युक्त महाराज श्री को
अश्नुताम्-प्राप्त हों
मयि-मुझ में
देवा-हे विद्वानो
दधतु-धारण कराओ
उत्तमाम्-उत्तम विद्यादि लक्षण समन्वित श्री को
तस्यै-उसको
ते-तथा
स्वाहा-मैं अत्यंत प्रीति को स्वीकार करूं।

व्याख्या:-हे महाविद्य महाराज सर्वेश्वर। मेरा ब्रह्म और क्षत्र ये दोनों आपकी कृपा से यथावत अनुकूल हों। सर्वोत्तम विद्यादि लक्षणयुक्त महाराज श्री को हम प्राप्त हों।
हे विद्वानो। दिव्य ईश्वरगुण परमकृपा आदि, उत्तम विद्यादि लक्षण समन्वित श्री को मुझमें अचलता से धारण कराओ ताकि उसको हम अत्यंत प्रीति से स्वीकार करूं और उस श्री को विद्यादि सद्गुण व सर्व संसार के हित के लिये तथा राज्यादि प्रबंध के लिये व्यय करूं।

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