Sunday, February 28, 2016

वेद सार 26

तेजोऽसि तेजोमयि धेहि। वीर्यमसि वीर्यं मयि धेहि।
बलमसि बलं मयि धेहि। ओजोऽस्योजो मयि धेहि।
मन्युरसि मन्युं मयि धेहि। सहोऽसि सहो मयि धेहि।।
                                                          यजुर्वेद-9। 9। 9
भावार्थ:- तेज:-हे स्वप्रकाश अनंत तेज आप अविद्य अंधकार से रहित असि-हो, तेज:-वही तेज, मयि-मुझमें
 धेहि-धारण करो
वीर्यम्-हे अन्तन्त वीर्य परमात्मन्, सर्वोत्तम बल
धेहि-स्थिर रखो
बलम्-हे अनंत बल परमात्मन्, उत्तम बल
ओज:-हे अनंत पराक्रम, उस पराक्रम को
मन्यु:-हे दुष्टों पर क्रोध करने वाले मन्युम्-दुष्टों पर क्रोध को
सह:-हे अनंत सहनस्वरूप आप अत्यंत सहनशक्ति वाले।

व्याख्या:-हे स्वप्रकाश अनंत तेज, आप अविद्यान्धकार से रहित हो, सत्य विज्ञान तेजस्वरूप हो,आप कृपा दृष्टि से मुझमें वही तेज धारण करो जिससे मैं निस्तेज, दीन और भीरू कहीं कभी न होऊंं।
हे अनंत वीर्य परमात्मन्। आप वीर्यस्वरूप हो, आप सर्वोत्तम बल मुझमें भी स्थिर रखें।
हे अनंत पराक्रम, आप स्वपराक्रम स्वरूप हो सो मुझ में भी उस पराक्रम को सदैव धारण करो।
हे दुष्टानामुपरि क्रोधकृत् मुझमें भी दुष्टों पर क्रोध धारण कराओ।
हे अनंत सहनस्वरूप, मुझमें भी आप सहन सामथ्र्य धारण करो अर्थात् शरीर, इन्द्रिय, मन और आत्मा इनके तेजादि गुण कभी मुझमे दूर न हों जिससे मैं आप की भक्ति का स्थिर अनुष्ठान करूं और आप के अनुग्रह से संसार में सदा सुखी रहूं।


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