Monday, February 15, 2016

वेद सार 18


इन्द्रोविश्वस्य राजति। शं नो अस्तु द्विपदे शं चतुष्यदे।।
                                                            यजुर्वेद:-21/36/8

भावार्थ :-
इन्द्र:- हे इन्द्र आप परमेश्वर युक्त हो
विश्वस्य - समस्त संसार के
राजति - राजा हो
शं - परम सुख दायक
न: - हमलोगों के
अस्तु - हो
द्विपदे - पुत्रादि के लिए
चतुष्यदे - हस्ती, अश्व और गवादि पशुओं के लिए।

व्याख्या:- हे इंद्र। आप परमैश्वरयुक्त समस्त संसार के राजा हो, सर्व प्रकाशक हो। हे रक्षक! आपकी कृपा से हमलोगों के जो पुत्रादि हो उसके लिए भी आप परम सुखदायक हों तथा हस्ती,अश्व और गौ आदि पशुओं के लिए भी परम सुख कारक हों जिससे हमलोग सदा आनंदित रहें।


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