Thursday, February 18, 2016

शक्ति पीठ का रहस्य


पुराण के अनुसार राजा दक्ष प्रजापति ने यज्ञ में शिव को निमंत्रण नहीं भेजा। इसको महादेव का अपमान मानकर सति ने दक्ष प्रजापति की यज्ञ कुंडली में कूदकर प्राण त्याग दिए। इस समाचार को सुनने के बाद शिवजी को बहुत क्षोभ और क्रोध उत्पन्न हुआ। वे सति के शव को कंधे पर रख दक्ष के यज्ञ का विध्वंस कर तांडव करने लगे। इससे समस्त ब्रह्मांड सहित देवी, देवता भयभीत हो गए। इसपर सभी देवताओं ने भगवान विष्णु की प्रार्थना की। तदोपरांत भगवान विष्णु ने शिव के मोह की शांति के लिए सति के शव को काटकर विभिन्न स्थानों पर गिरा दिया जो शक्तिपीठ कहलाए। योगिनी हृदय एवं ज्ञानार्णव के अनुसार ऊध्र्वभाग के अंग जहां गिरे वहां वैदिक एवं दक्षिण मार्ग की ओर हृदय से निम्न भाग के अंगोंं के पतन स्थलों में वाम मार्ग की सिद्धि होती है।
    वर्णमाला - अ, आ, इ, ई, उ, ऊ, ऋ, ॠ , लृ, ए, ऐ, ओ, औ, अं, अ:। क, ख, ग, घ, ङ। च, छ, ज, झ, ञ। ट, ठ, ड, ढ़,ण। त, थ, द, ध, न। प, फ, ब, भ, म। य, र, ल, व, श, स, ष, ह, क्ष, त्र, ज्ञ। यही 51 अक्षर की वर्णमाला है जिसका अंतिम अक्षर'ज्ञÓ है। इसी माला के आधार पर सति के विभिन्न अंगों का पात हुआ। इससे निष्कर्ष निकलता है कि भूमि वर्ण समाम्नायस्वरुप ही है। इसके अनुसार--

1. सती की योनी जहां गिरा वहां कामरूप नामक पीठ हुआ। यह 'अÓ कार का उत्पत्ति स्थान एवं श्रीविद्या से अधिष्ठित है। यहां शावर मंत्रों की सिद्धि  होती है।

2. सती का स्तन जहां गिरा वहां काशिका पीठ हुआ। वहां 'आÓ कार उत्पन्न हुआ। वहां देहत्याग करने से मुक्ति मिलती है। सती के स्तनों से दो धाराएं निकली जो 'असीÓ और 'वरणाÓ नदी हुई।

3. सती का गुह्य भाग जहां गिरा वहां नैपाल पीठ हुआ। वहां से 'इÓ कार की उत्पत्ति हुई। यह पीठ बाम मार्ग का मूल स्थान है। यहां वैदिक मंत्रों की सिद्धि होती है।

4. सती का बायां नेत्र रौद्र पर्वत पर गिरा। वह महत्पीठ कहलाया। वहां से 'ईÓ कार की उत्पत्ति हुई। यहां वामचार से मंत्र सिद्ध होने पर देवताओं का दर्शन होता है।

5. सती का बायां कान जहां गिरा वह काश्मीर पीठ हुआ। यहां से 'उÓ कार की उत्पत्ति हुई। यहां सभी मंत्रों की सिद्धि होती है।

6. सती का दायां कान जहां गिरा वह कान्यकुब्ज पीठ हुआ। यहां से 'ऊÓ कार की उत्पत्ति हुई। यहां वैदिक मंत्रों की सिद्धि होती है।

7. सती का नाक जहां गिरा वह पूर्णगिरी पीठ हुआ। यहां से 'ऋÓ कार की उत्पत्ति हुई। यहां योग सिद्धी होती है। और मन्ताधिष्ठातृदेव प्रत्यक्ष दर्शन देते हैं।

8. सती के वामगण्ड स्थल की पतन भूमि पर अर्बुदाचलपीठ हुआ। यहां से 'ॠ Ó कार की उत्पत्ति हुई। यहां बाम मार्ग की सिद्धि होती है।

9. जहां दक्षिण गण्ड स्थल गिरा वह आम्रातकेश्वरपीठ हुआ। यहां से 'लृÓ कार की उत्पत्ति हुई। यहां धनदादि की प्राप्ति होती है।

10. नखों के गिरने के स्थान  एकाम्रपीठ कहलाया। यहां 'लृृÓ कार की उत्पत्ति हुई। यह पीठ विद्या प्रदायक है।

11. त्रिवलि के गिरने के स्थान में त्रिसोतपीठ हुआ। यहां 'एÓ कार की उत्पत्ति हुई। यहां गृहस्थ द्विज को पौष्टिक मंत्रों की सिद्धि होती है।

12. नाभि के गिरने के स्थान में कामकोटिपीठ हुआ। वहां 'ऐÓ कार की उत्पत्ति हुई। यहां समस्त काम मंत्रों की  सिद्धि होती है।

13.अंगुलियों के गिरने के स्थान पर कैलासपीठ हुआ। वहां 'ओÓ कार की उत्पत्ति हुई। यहां करमाला से मंत्र जप करने पर अतिशीघ्र सिद्धि प्राप्त होती है।

14. जहां दांत गिरा वह भृगु पीठ कहलाया। यहां 'औÓ कार की उत्पत्ति हुई। यहां वैदिक मंत्र सिद्ध होते हैं।

15. दाहिना करतल जहां गिरा वह केदारपीठ कहलाया। यहां 'अंÓ की उत्पत्ति हुई। यहीं सर्व सिद्ध पीठ कहलाया।

16. वाम गण्ड की निपात भूमि पर चंद्रपुर पीठ हुआ। यहां 'अ:Ó की उत्पत्ति हुई। यहां सभी मंत्र सिद्ध होते है।

17. जहां मस्तिष्क गिरा वहां श्रीपीठ हुआ। यहां 'कÓ कार की उत्पत्ति हुई। यहां मुख की शुद्धि होती है। कलयुग में यहां पापी जीवों का पहुंचना कठिन है।

18. कन्चुकी की पतन भूमि ज्योतिष्मती पीठ कहलाया। यहां 'खÓ कार की उत्पत्ति हुई। यह नर्मदा तट पर स्थित है। यहां तप करने से जीवन से मुक्ति मिलती है।

19. जहां वक्ष गिरा वह ज्वालामुखी पीठ कहलाया। यहां 'गÓ कार की उत्पत्ति हुई। यहां तपस्या से तेज प्राप्त होता है।

20. बायां स्कंध जहां गिरा वह गालव पीठ कहलाया। यहां 'घÓ कार की उत्पत्ति हुई। यहां राग-ज्ञान की सिद्धि होती है।

21. दाहिना कक्ष जहां गिरा वह कुलान्तक पीठ हुआ। यहां 'ङÓ कार की उत्पत्ति हुई। विद्वेषण, उच्चाटन, मारण के प्रयोग वहां सिद्ध होते हैं।

22. जहां बायां कक्ष गिरा वहां कोट्टकपीठ हुआ। यहां 'चÓ कार की उत्पत्ति हुई। यहां राक्षसों ने सिद्धि प्राप्त की।

23. जठर प्रदेश के पतन स्थल में गोकर्ण पीठ हुआ। यहां 'छÓ कार की उत्पत्ति हुई। यहां तप से तेज व स्मृति की प्राप्ति होती है।

24. त्रिवलियों में से जहां प्रथम वलिका गिरा वह मातुरेश्वर पीठ कहलाया। वहां 'जÓ कार की उत्पत्ति हुई। यहां शैव मंत्र सिद्ध होते हैं।

25.अपर वलि के गिरने का स्थान अट्टहास पीठ के नाम से प्रसिद्ध हुआ। यहां 'झÓ कार की उत्पत्ति हुई। यहां गणेश मंत्रों की सिद्धि होती है।

26. तीसरी वलिका का पतन स्थल विरजपीठ के नाम से प्रसिद्ध हुआ। यहां 'ञÓ कार की उत्पत्ति हुई। यहां विष्णु मंत्रों की सिद्धि होती है।

27. जहां वस्तिका पात हुआ वह राजगृह पीठ कहलाया। यहां 'टÓ कार की उत्पत्ति हुई। यहां ऐन्द्रजालिक मंत्रों की सिद्धि होती है। यहां वेदार्थज्ञान की प्राप्ति होती है।

28. नितम्ब के पतन स्थल को महापथपीठ के रूप में प्रसिद्धि मिली। यहां 'ठÓ कार की उत्पत्ति हुई। यहां जाति दुष्ट ब्राह्मणों ने शरीर त्याग किया और कलयुग में अघोरादि मार्ग को चलाया।

29. जहां जघन(जंघा) का पात हुआ वह कौलगिरि पीठ कहलाया। यहां 'एÓ  कार की उत्पत्ति हुई। यहां वन देवताओं के मंत्रों की सिद्धि होती है।

30. दक्षिण ऊरु के पतनस्थल एलापुर पीठ के रूप में प्रसिद्ध हुआ। यहां 'ढÓ कार की उत्पत्ति हुई। यहां रोग निवारक आदि मंत्र सिद्ध होते हैं।

31. वाम ऊरू की पतन स्थल महाकालेश्वर पीठ कहलाया। यहां 'णÓ कार की उत्पत्ति हुई। यहां आयुवृद्धिकारक मृत्युंजयादि मंत्र सिद्ध होते हैं।

32.दक्षिण जानु का पतन स्थल जयंती पीठ कहलाया। यहां 'तÓ कार की उत्पत्ति हुई। यहां धनुर्वेद की सिद्धि होती है।

33.वाम जानु का पतन स्थल उज्जयिनी पीठ कहलाया। यहां 'थÓ कार की उत्पत्ति हुई। यहां कवच मंत्रों की सिद्धि होती है।

34. दक्षिण जंघा का पतन स्थल योगिनी पीठ कहलाया। यहां 'दÓ कार की उत्पत्ति हुई। यहां कौलिक मंत्रों की सिद्धि होती है।

35.वाम जंघा का पतन स्थल क्षीरिकापीठ कहलाया। यहां 'धÓ कार की उत्पत्ति हुई। यहां वैतालिक व शावर मंत्रों की सिद्धि होती है।

36.दक्षिण गुल्फ का पतन स्थल हस्तिनापुर पीठ कहलाया। यहां 'नÓ कार की उत्पत्ति हुई। यहां सूर्य मंत्रों की सिद्धि होती है।

37. वाम गुल्फ का पतन स्थल उड्डीशपीठ कहलाया। यहां 'पÓ कार की उत्पत्ति हुई। यहां महातंत्रों की सिद्धि होती है।

38.जहां देह रस का पतन हुआ वह प्रयाग पीठ कहलाया। यहां 'फÓ कार की उत्पत्ति हुई। यहां अन्यान्य अस्थियों का पतन होने से अनेक उप पीठों तथा बगला, चामुंडा, राज राजेश्वरी संज्ञक तथा भुवनेश्वरी उप पीठ हुए। इसलिए प्रयाग तीर्थराज एवं पीठराज कहलाया।

39. दक्षिण पृष्णि का पतन स्थल पष्ठीपीठ कहलाया। यहां 'बÓ कार की उत्पत्ति हुई। यहां पादुका मंत्रों की सिद्धि होती है।

40.वाम पृष्णि का पतन स्थल मायापुर पीठ कहलाया। यहां 'भÓ कार की उत्पत्ति हुई। यहां समस्त मायाओं की सिद्धि होती है।

41.रक्त के पतन स्थल मलय पीठ के रूप में प्रसिद्ध हुआ। यहां 'मÓ कार की उत्पत्ति हुई। यहां बौद्ध मंत्रों की सिद्धि होती है।

42.पित्त का पतन भूमि श्रीशैल पीठ के रूप में प्रसिद्ध हुआ। यहां 'यÓ कार की उत्पत्ति हुई। यहां वैष्णव मंत्र सिद्ध होते हैं।

43.मेद का पतन स्थल मेरू पीठ कहलाया। यहां 'रÓ कार की उत्पत्ति हुई। यहां स्वर्णाकर्षण भैरव की सिद्धि होती है।

44.जहां जिह्वाग्र का पतन हुआ वह गिरी पीठ कहलाया। यहां 'लÓ कार की उत्पत्ति हुई। यहां वाक् सिद्धि मिलती है।

45.जहां मज्जा का पतन हुआ वह माहेन्द्र पीठ कहलाया। यहां 'वÓ कार की उत्पत्ति हुई। यहां शाक्त मंत्रों की सिद्धि होती है।

46.दक्षिण अंगुष्ठ का पतन स्थल वामन पीठ कहलाया। यहां 'शÓ कार की उत्पत्ति हुई। यहां समस्त मंत्रों की सिद्धि होती है।

47.वाम अंगुष्ठ का पतन स्थल हिरण्यपुर पीठ कहलाया। यहां 'षÓ कार की उत्पत्ति हुई। यहां वाम मार्ग से सिद्धि की प्राप्ति होती है।

48.रूचि का पतन स्थल महालक्ष्मी पीठ कहलाया। यहां 'सÓ कार की उत्पत्ति हुई। यहां सर्व सिद्धियां प्राप्त होती है।

49.धमनी का पतन स्थल अत्रि पीठ कहलाया। यहां 'हÓ कार की उत्पत्ति हुई। यहां यावत् सिद्धियां प्राप्त होती है।

50.छाया का पतन स्थल छायापीठ कहलाया। यहां 'क्षÓ कार की उत्पत्ति हुई। यहां शारीरिक विकारों और रोग से मुक्ति के मंत्र सिद्ध होते हैं।

51. केश पाश का पतन स्थल क्षत्रपीठ कहलाया यहां 'ज्ञÓ कार का पादुर्भाव हुआ। यहां समस्त सिद्धियां शीघ्रतापूर्वक प्राप्त होती है।

देवी पुराण के अनुसार महाशक्ति का शरीर उनकी लीला विग्रह ही है। जैसे निर्विकार चैतन्य शक्ति के योग से साकार विग्रह धारण करता है। वैसे ही शक्ति भी अधिष्ठान चैतन्य युक्त साकार विग्रह धारण करती है। इसलिए शिव-पार्वती दोनों मिलकर अद्र्धनारीश्वर के रूप में व्यक्त होते हैं। इन शक्ति पीठों में अपनी-अपनी योग्यता और अधिकार के अनुसार इष्ट देवता, मंत्र, पीठ, उप पीठ के साथ संबंध जोडऩे से सिद्धि प्राप्ति होती है।

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