शं नो वात: पवताशं नस्तपतु सूर्य:। शं न: कनिक्रद द्देव: पर्जन्योअभिवर्षतु।।
यजुर्वेद:-32/36/10
भावार्थ :-
शं - सुख कारक शीतल और सुगंध
न: - हमारे लिए
वात: - वायु
पवताम् - चले
तपतु - तपे
सूर्य: - सूर्य
क्रनिक्रदद - गर्जन पूर्वक
देव: - मेघ
अभिवर्षतु - वर्षें।
व्याख्या :- हे सर्व नियंत:। हमारे लिए सुखकारक शीतल मंद और सुगंध वायु सदैव चले। इसी तरह सदैव सुख कारक सूर्य भी तपे तथा सुख का शब्द लिए मेघ भी सदैव गर्जन करते हुए सुखकारक वर्षा वर्षे। जिससे आपके कृपापात्र हमलोग सदैव सुख और आनंद में ही रहें।
यजुर्वेद:-32/36/10
भावार्थ :-
शं - सुख कारक शीतल और सुगंध
न: - हमारे लिए
वात: - वायु
पवताम् - चले
तपतु - तपे
सूर्य: - सूर्य
क्रनिक्रदद - गर्जन पूर्वक
देव: - मेघ
अभिवर्षतु - वर्षें।
व्याख्या :- हे सर्व नियंत:। हमारे लिए सुखकारक शीतल मंद और सुगंध वायु सदैव चले। इसी तरह सदैव सुख कारक सूर्य भी तपे तथा सुख का शब्द लिए मेघ भी सदैव गर्जन करते हुए सुखकारक वर्षा वर्षे। जिससे आपके कृपापात्र हमलोग सदैव सुख और आनंद में ही रहें।
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