एनडीए सरकार ने सोमवार को वर्ष 2016-17 का आम वजट पेश किया। बजट में वित्त मंत्री ने साफ दर्शा दिया कि उनके हिसाब से रुपयों का आबंटन विकासोन्मुख भारत के लिए है। पहले देश है उसके बाद नागरिक। उन्होंने बजट के जरिए इस कल्पना को हकीकत में बदलने की कोशिश की है कि अगर मनुष्य स्वस्थ्य रहेगा तभी वह भारत के विकास में अपना योगदान दे पायेगा। मौजूदा समय में देश में स्वास्थ्य सुविधाएं उन व्यक्तियों को व्यापक और पर्याप्त पैमाने पर स्वास्थ्य सुविधाएं उपलब्ध कराने में सक्षम नहीं हैं जिन्हें इनकी सबसे अधिक आवश्यकता है।
मंत्री ने कहा कि जनसंख्या के बोझ, गरीबी और स्वास्थ्य क्षेत्र में कमजोर बुनियादी ढांचे की वजह से भारत को दुनिया के पिछड़े देशों से भी ज्यादा बीमारी के बोझ का सामना करना पड़ता है। स्वास्थ्य सेवा से जुड़े हर मानक पर हम दुनिया के फिसड्डी देशों से होड़ करते दिखाई देते हैं।
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प्रसव के दौरान शिशु मृत्यु दर
प्रसव के समय होने वाली शिशु मृत्यु दर प्रति एक हजार पर 52 है, जबकि श्रीलंका में 15, नेपाल में 38, भूटान में 41 और मालदीव में यह आंकड़ा 20 का है। स्वास्थ्य सेवा पर खर्च का 70 प्रतिशत निजी क्षेत्र से आता है जबकि इस मामले में वैश्विक औसत 38 प्रतिशत है। विकसित देशों के साथ तुलना करने पर विषमता का यह आंकड़ा और भी ज्यादा चौंकाने वाला है। इसके अलावा, चिकित्सा पर व्यय का 86 प्रतिशत तक लोगों को अपनी जेब से चुकाना होता है जो यह बताता है कि देश में स्वास्थय बीमा की पैठ कितनी कम है। भारत कुल स्वास्थ्य सेवा खर्च और बुनियादी ढांचे की आपूर्ति, दोनों के ही लिहाज से कई विकासशील देशों से काफी पीछे है।
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प्रति 1000 व्यक्ति पर अस्पतालों की संख्या
ब्राजील में प्रति हजार लोगों पर अस्पतालों में बेडों की उपलब्धता 2.3 है पर भारत में यह आंकड़ा केवल 0.7 है। श्रीलंका में 3.6 और चीन में 3.8 है।
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डाक्टरों की उपलब्धता प्रति 1000 व्यक्ति पर
डॉक्टरों की उपलब्धता का वैश्विक औसत प्रति एक हजार व्यक्तियों पर 1.3 है। जबकि भारत में यह केवल 0.7 है। आधिकारिक आंकड़ों के मुताबिक, वर्ष 2011 में भारत में स्वास्थ्य पर प्रति व्यक्ति कुल व्यय 62 अमेरिकी डालर (लगभग पौने चार हजार रुपये) था। जबकि अमेरिका में 8467 डालर, नॉर्वे में 9908 अमेरिकी डालर तक था। श्रीलंका तक हमसे प्रति व्यक्ति लगभग 93 अमेरिकी डालर ज्यादा खर्च कर रहा था। आंकड़ों के आधार पर हमारे पास 400,000 डाक्टरों, 700,000 बेडों और लगभग 40 लाख नर्सों की कमी है।
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भारत में प्रति वर्ष गुर्दे की बीमारी के अंतिम चरण में पहुंच चुके 2.2 लाख नये रोगियों की बढोत्तरी हो रही है। गुर्दे की बीमारियों के शिकार लोगों की बढती संख्या को देखते हुए सरकार ने 'राट्रीय डायलिसिस सेवा कार्यक्रम की शुरुआत करने का प्रस्ताव रखा है। जिसके तहत सभी जिला अस्पतालों में डायसिलिस सेवाएं मुहैया कराई जायेंगी। अभी भारत में लगभग 4950 डायलिसिस केंद्र हैं जो मुख्यत: निजी क्षेत्र और प्रमुख नगरों में हैं। इसके अलावा प्रत्येक डायलिसिस के लिए लगभग 2000 रुपये का खर्च आता है। इसको लेकर बजट में डायलिसिस उपकरणों के कुछ हिस्से पुर्जो पर बुनियादी सीमा शुल्क, उत्पाद-सीवीडी और एसएडी की छूट देने का प्रावधान ्रकिया गया है।
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गरीब परिवारों के इलाज के लिए नयी स्वास्थ्य सुरक्षा योजना
गरीब और आर्थिक रूप से कमजोर परिवारों के गंभीर बीमारियों से ग्रस्त लोगों के इलाज के लिए सरकार ने एक नयी स्वास्थ्य सुरक्षा योजना शुरू करने की घोषणा की है। जिसके तहत प्रति परिवार एक लाख रुपये तक का स्वास्थ्य कवर प्रदान किया जायेगा। इस प्रस्तावित योजना के तहत ऐसे परिवार के 60 साल से अधिक आयु वाले बीमार लोगों को 30 हजार रुपये का अतिरिक्त टॉप अप पैकेज दिया जायेगा।
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किफायती कीमतों पर स्तरीय औषधियां बनाना लक्ष्य
उच्चस्तरीय दवाएं उपलब्ध कराने के लिए प्रधानमंत्री जन औषधि योजना के तहत 3,500 मेडिकल स्टोर खोले जाएंगे। साथ ही जेनेरिक दवाओं के प्रचलन को बढ़ावा देने के लिए जोर देने की बात कही गई है।
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भागलपुर जो कि पूर्वी बिहार का चिकित्सकीय हब है यहां की स्थिति काफी भयावह है। यहां कि 32 लाख की आबादी पर कुल 132 डाक्टर(42 स्थायी,90 संविदा पर) कार्यरत हैं। वहीं सरकारी स्तर पर जवाहरलाल नेहरू अस्पताल को छोड़कर एक भी डायलिसिस केंद्र नहीं है। जेनेरिक दवा की एक भी दुकानें नहीं हैं।
फैजान अशर्फी
जिला स्वास्थ्य समिति प्रबंधक
मंत्री ने कहा कि जनसंख्या के बोझ, गरीबी और स्वास्थ्य क्षेत्र में कमजोर बुनियादी ढांचे की वजह से भारत को दुनिया के पिछड़े देशों से भी ज्यादा बीमारी के बोझ का सामना करना पड़ता है। स्वास्थ्य सेवा से जुड़े हर मानक पर हम दुनिया के फिसड्डी देशों से होड़ करते दिखाई देते हैं।
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प्रसव के दौरान शिशु मृत्यु दर
प्रसव के समय होने वाली शिशु मृत्यु दर प्रति एक हजार पर 52 है, जबकि श्रीलंका में 15, नेपाल में 38, भूटान में 41 और मालदीव में यह आंकड़ा 20 का है। स्वास्थ्य सेवा पर खर्च का 70 प्रतिशत निजी क्षेत्र से आता है जबकि इस मामले में वैश्विक औसत 38 प्रतिशत है। विकसित देशों के साथ तुलना करने पर विषमता का यह आंकड़ा और भी ज्यादा चौंकाने वाला है। इसके अलावा, चिकित्सा पर व्यय का 86 प्रतिशत तक लोगों को अपनी जेब से चुकाना होता है जो यह बताता है कि देश में स्वास्थय बीमा की पैठ कितनी कम है। भारत कुल स्वास्थ्य सेवा खर्च और बुनियादी ढांचे की आपूर्ति, दोनों के ही लिहाज से कई विकासशील देशों से काफी पीछे है।
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प्रति 1000 व्यक्ति पर अस्पतालों की संख्या
ब्राजील में प्रति हजार लोगों पर अस्पतालों में बेडों की उपलब्धता 2.3 है पर भारत में यह आंकड़ा केवल 0.7 है। श्रीलंका में 3.6 और चीन में 3.8 है।
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डाक्टरों की उपलब्धता प्रति 1000 व्यक्ति पर
डॉक्टरों की उपलब्धता का वैश्विक औसत प्रति एक हजार व्यक्तियों पर 1.3 है। जबकि भारत में यह केवल 0.7 है। आधिकारिक आंकड़ों के मुताबिक, वर्ष 2011 में भारत में स्वास्थ्य पर प्रति व्यक्ति कुल व्यय 62 अमेरिकी डालर (लगभग पौने चार हजार रुपये) था। जबकि अमेरिका में 8467 डालर, नॉर्वे में 9908 अमेरिकी डालर तक था। श्रीलंका तक हमसे प्रति व्यक्ति लगभग 93 अमेरिकी डालर ज्यादा खर्च कर रहा था। आंकड़ों के आधार पर हमारे पास 400,000 डाक्टरों, 700,000 बेडों और लगभग 40 लाख नर्सों की कमी है।
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भारत में प्रति वर्ष गुर्दे की बीमारी के अंतिम चरण में पहुंच चुके 2.2 लाख नये रोगियों की बढोत्तरी हो रही है। गुर्दे की बीमारियों के शिकार लोगों की बढती संख्या को देखते हुए सरकार ने 'राट्रीय डायलिसिस सेवा कार्यक्रम की शुरुआत करने का प्रस्ताव रखा है। जिसके तहत सभी जिला अस्पतालों में डायसिलिस सेवाएं मुहैया कराई जायेंगी। अभी भारत में लगभग 4950 डायलिसिस केंद्र हैं जो मुख्यत: निजी क्षेत्र और प्रमुख नगरों में हैं। इसके अलावा प्रत्येक डायलिसिस के लिए लगभग 2000 रुपये का खर्च आता है। इसको लेकर बजट में डायलिसिस उपकरणों के कुछ हिस्से पुर्जो पर बुनियादी सीमा शुल्क, उत्पाद-सीवीडी और एसएडी की छूट देने का प्रावधान ्रकिया गया है।
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गरीब परिवारों के इलाज के लिए नयी स्वास्थ्य सुरक्षा योजना
गरीब और आर्थिक रूप से कमजोर परिवारों के गंभीर बीमारियों से ग्रस्त लोगों के इलाज के लिए सरकार ने एक नयी स्वास्थ्य सुरक्षा योजना शुरू करने की घोषणा की है। जिसके तहत प्रति परिवार एक लाख रुपये तक का स्वास्थ्य कवर प्रदान किया जायेगा। इस प्रस्तावित योजना के तहत ऐसे परिवार के 60 साल से अधिक आयु वाले बीमार लोगों को 30 हजार रुपये का अतिरिक्त टॉप अप पैकेज दिया जायेगा।
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किफायती कीमतों पर स्तरीय औषधियां बनाना लक्ष्य
उच्चस्तरीय दवाएं उपलब्ध कराने के लिए प्रधानमंत्री जन औषधि योजना के तहत 3,500 मेडिकल स्टोर खोले जाएंगे। साथ ही जेनेरिक दवाओं के प्रचलन को बढ़ावा देने के लिए जोर देने की बात कही गई है।
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भागलपुर जो कि पूर्वी बिहार का चिकित्सकीय हब है यहां की स्थिति काफी भयावह है। यहां कि 32 लाख की आबादी पर कुल 132 डाक्टर(42 स्थायी,90 संविदा पर) कार्यरत हैं। वहीं सरकारी स्तर पर जवाहरलाल नेहरू अस्पताल को छोड़कर एक भी डायलिसिस केंद्र नहीं है। जेनेरिक दवा की एक भी दुकानें नहीं हैं।
फैजान अशर्फी
जिला स्वास्थ्य समिति प्रबंधक
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