Thursday, February 11, 2016

वेद सार 15

सेमं न: काममापृण गोभिरश्वै: शतक्रतो।
स्तवाम त्वा स्वाध्य:।।
                                            ऋग्वेद 1/1/31/9

भावार्थ:-
 स:- सो आप
इमम् - इस
न: - हमारे
कामम् - काम को
आपृण-परिपूर्ण करो
गोभि:-गाय, उत्तम इन्द्रिय, श्रेष्ठ
पशुओं से
अश्वै:-सर्वोत्तम अश्व विद्या और चक्रवर्ती राज्यैश्वर्य से
शतक्रतो-हे अनंत क्रियेश्वर
स्तवाम-हम स्तवन करें
त्वा-आपका
स्वाध्य:-सुबुद्धियुक्त होके।

व्याख्या:-हे अनंत क्रियेश्वर आप
असंख्यात विज्ञानादि यज्ञों से प्राप्य
तथा अनंतक्रियायुक्त हैं। इसलिए आप गाय, उत्तम इन्द्रिय, श्रेष्ठ पशु, सर्वोत्तम अश्वविद्या तथा श्रेष्ठ घोड़ा आदि पशुओं और चक्रवर्ती राज्यैश्वय्र्य से हमारे काम को परिपूर्ण करें। जिससे हम सुबुद्धियुक्त होकर उत्तम प्रकार से आप की स्तुति
करें। हमें दृढ़ विश्वास है कि आप के बिना दूसरा कोई किसी को काम पूर्ण नहीं कर सकता। आपको छोड़कर जो दूसरे का ध्यान और याचना करता है उसके सब काम नष्ट हो जाते हैं।


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