Wednesday, February 24, 2016

वेद सार 23

मयीदमिन्द्र इन्द्रियं दधात्वस्मान रायो मघवान: सचन्ताम्।
 अस्माक सन्त्वाशिष: सत्या न: सन्त्वाशिष:।।
                                                                        यजुर्वेद:- 51/ 2/10
भावार्थ:-
मयि-मुझमें
इदम्-विज्ञानादि
इन्द्र-हे परमैश्वर्यवान् ईश्वर, इन्द्रियम-शुद्ध इन्द्रिय को
दधातु-धारण करो
अस्मान-हमको
राय:- उत्तम धन को
मघवान-परम धनवान, सचन्ताम्-प्राप्त करो
अस्माकम्-हमारी
सन्तु-होनी चाहिए
आशिष:-आशा
सत्या:-सत्य ही
न:-हमलोगों की
सन्तु-शीघ्र ही कीजिए।

व्याख्या:-हे इन्द्र परमैश्वर्यवन् ईश्वर। मुझमें विज्ञानादि शुद्ध इन्द्रिय और उत्तम धन को परम धनवान आप प्राप्त करो।
हे सर्व काम पूर्ण करने वाले ईश्वर आपकी कृपा से हमारी आशा सत्य ही होनी चाहिए। हे भगवान, हमलोगों की इच्छा आप शीघ्र ही सत्य कीजिये जिससे हमारी न्याययुक्त इच्छा के सिद्ध होने से हमलोग परमानंद में सदा रहें।


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