Thursday, February 25, 2016

तंत्र- मंत्र- यंत्र: भाग 2


तंत्र साधना में मंत्र और यंत्र दोनों की आवश्यकता होती है। ये दोनों एक दूसरे के पूरक हैं। मंत्र का कार्य ध्वनि के क्षेत्र में प्रभाव डालना है और यंत्र का कार्य दृश्य के क्षेत्र में प्रभाव डालना है।
मंत्र योग को एक विज्ञान भी कहा गया है। 'मननात्त्रायते इति मंत्र:Ó। अर्थात जिसके बार-बार स्मरण मात्र से मनुष्य जन्म-मरण के बंधन से मुक्त हो जाता है और उसके जीवन में अलौकिक शक्तियों का उदय होता है।
वहीं सौन्दर्य लहरी के प्रथम श्लोक में शंकराचार्य ने कहा है- 'शिव: शक्त्या युक्तोयदि शक्ति प्रभवितुं खलमÓ। अर्थात् शक्ति की प्रकृति त्रिगुणात्मक होती है। इसी कारण से तंत्र में शक्ति को अधोमुखि त्रिभुज के रुप में अभिव्यक्त किया जाता है। इन तीनों तत्वों को सत्व, रज, तम और सगुणात्मक उपासना में महासरस्वती, महालक्ष्मी व महाकाली की संज्ञा दी गई है। इसके अलावा ब्रह्मांड में छह प्रकार की शक्तियां विद्यमान हैं-पराशक्ति, ज्ञान शक्ति, इच्छा शक्ति, क्रिया शक्ति, कुण्डलिनी शक्ति और मंत्र शंक्ति।

सनातन धर्म में तंत्र का महत्व:-
मार्कण्डेय पुराण और अथर्ववेद तंत्र शास्त्र का सर्वोत्तम ग्रंथ है। मार्कण्डेय पुराण में 700 श्लोकों का उल्लेख है। इसमें मां दुर्गा की गोपनीय तांत्रिक साधना का वर्णन है। इसमें सबसे महत्वपूर्ण मंत्र हैं-'ऊँ ऐं ह्रीं क्लीं चामुंडायै विच्चैÓ। वहीं अथर्ववेद में  ऋचाओं(श्लोक)की संख्या 731 है। इसमें विपत्ति और व्याधि नाश एवं भूत- प्रेत से मुक्ति संबंधित मंत्र हैं।
शक्ति की अभिव्यक्ति के लिए हमेशा आधार की आवश्यकता होती है, और बिना आधार शक्ति प्रकट नहीं होती।
मंत्र में अद्भुत और असीमित शक्तियां निहित हैं। कोई भी मंत्र अपने आप में पूर्ण है। साधक विभिन्न मंत्रों का प्रयोग विभिन्न शक्तियों को प्राप्त करने के लिए करते हैं।  इसके लिए गहन साधना और सिद्ध गुरु की भी आवश्यकता होती है। यदि गुरु न मिले तो शुद्ध हो कर शुभ मुहूर्त में मंत्र पाठ करें। यंत्र पूजन करें। फिर साधना प्रारम्भ करें।

मंत्र साधना में पांच शुद्धियां अनिवार्य है। 
भाव शुद्धि, मंत्र शुद्धि, द्रव्य शुद्धि, देह शुद्धि और स्थान शुद्धि। अपनी बायीं ओर दीपक तथा दायीं तरफ धूप रखें। शुभ मुहूर्त में निश्चित संख्या में संकल्प करके जाप प्रारम्भ करें।
सभी इष्ट की साधना के लिए अलग-अलग प्रकार की मालाओं का विधान है। मालाओं में 108 गुडिया भगवान शिव के 'शिवसूत्रÓ में वर्णित 108 ध्यान पद्धतियों का सूचक है।
शिव के लिए रुद्राक्ष की माला, हनुमान के लिए रक्त चन्दन या मंूगा की माला, विष्णु के लिए तुलसी या चन्दन, लक्ष्मी के लिए कमलगट्टा एवं अधिकांश कार्यों के लिए स्फटिक की माला उपयोगी होती है।
अलग-अलग कार्यो के लिए गुडियों की संख्या का विशेष महत्व होता है। जैसे -मोक्ष प्राप्ति के लिए 25 गुडियों की माला, धन और लक्ष्मी के लिए 30 गुडियों की माला, निजी स्वार्थ के लिए 27 गुडियों की माला, प्रिया प्राप्ति के लिए 54 गुडियों की माला, और समस्त कार्यों एवं सिद्धियों के लिए 108 गुडियों की माला का विधान है।

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