Sunday, March 6, 2016

वेद सार 28

यतो यत: समीहसे ततो नो अभय कुरू।
शं न: कुरू प्रजाभ्यो मयं न: पशुभ्यं।। 
                  यजुर्वेद:- 36। 22

भावार्थ :- यतो यत: -जिस देश से  
 सम्यक- चेष्टा करते हो
 तत: - उस- उस देश से
 न:- हमको
अभयम्- भय रहित
कुरु- करो
शम्- सुख
प्रजाम्य: -प्रजा से
पशुम्य: -पशुओं से।

व्याख्या:- हे महेश्वर, जिस-जिस देश से आप सम्यक चेष्टा करते हो उस- उस देश से हमको अभय करो। अर्थात जहां-जहां से हमको भय प्राप्त होने लगे वहां-वहां से सर्वथा हमलोगों को भयरहित करो तथा प्रजा से हमको सुख की व्यवस्था करो। हमारी प्रजा सब दिन सुखी रहे। वह भय देने वाली कभी न हो। आप पुशओं से भी हमको अभय करो। किसी से किसी प्रकार का भय हमलोगों को आप की कृपा से कभी न हो। जिससे हम लोग निर्भय होकर सदैव परमानंद को भोगें ओर निरंतर आपका राज्य तथा आपकी भक्ति करें।

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