Tuesday, March 15, 2016

तंत्र-मंत्र-यंत्र भाग 5

आदि शक्ति दुर्गा ही महाकाली, महालक्ष्मी और महा सरस्वती के रूप में त्रिधारूप हैं। इनके प्रभाव और महत्व का वर्णन करना सामथ्र्य के बाहर की बात है। इसलिए तो स्वयं महादेव ने इन्हें देवताओं के लिए देव शक्ति, तपस्वियों के लिए तप:शक्ति, साधना करने वालों के लिए साधना शक्ति, राजाओं के लिए राजशक्ति, ब्राह्मणों के लिए विद्याशक्ति, क्षत्रियों के लिए बलशक्ति, वैश्यों के लिए लक्ष्मीशक्ति, शूद्रों के लिए महत्वशक्ति, गृहस्थों के लिए मायाशक्ति, भक्तों के लिए भक्तिशक्ति, स्त्रियों के लिए सौभाग्यशक्ति और सर्वसाधारण के लिए कल्याणशक्ति कहा है। इस  ब्रह्मांड की आधारभूत शक्ति यही हंै। क्योंकि भगवान विष्णु में सात्विक, ब्रह्मा में राजसी और शिव में तामसी शक्ति के रूप में विद्यमान रहने वाली यह आद्याशक्ति है।
 मां भगवती की पूजा के तीन विधान हैं - 1.सात्विकी 2.राजसी 3.तामसी। इन तीनों में सात्विक पूजा का विशेष महत्व है। गृहस्थ जन को सात्विक पूजा ही करनी चाहिए। इसीलिए तो गृहस्थों के लिए मार्कण्डेय पुराण अंतर्गत दुर्गा सप्तशती में कुछ विशेष याचना और इच्छा रूपी फल की प्राप्ति के लिए विशेष मंत्र के अनुष्ठान की बात कही गई हैं। जिसका जप और हवन नियमानुसार करने से उसकी प्राप्ति हो जाती है।

नीचे उक्त मंत्रों की शृंखला है जिसका याचक सुविधानुसार विधि विधान के अनुसार अनुष्ठान कर मनोवांछित की प्राप्ति कर सकता है--


सामूहिक कल्याण के लिए :-
देव्या यथा ततमिदं जगदात्मशक्त्या निश्शोवदेवगणशक्ति समूहमूत्र्या।
तामस्बिकामखिलदेवमहर्षि पूज्यांं भक्त्या नता: स्म विदधातु शुभानि न:।।

विपत्ति नाश के लिए :-
शरणागतदीनार्तपरित्राणपरायणे। सर्वस्यार्तिहरे देवि नारयणि नमोऽस्तु ते।।

भय नाश के लिए :-
ज्वालाकराल मत्युग्रमशेषासुरसूदनम्। त्रिशूलं पातु नो भीतेर्मद्रकालि नमोऽस्तु ते।।

पाप नाश के लिए :-
हिनस्ति दैत्यतेजांसि स्वनेनापूर्ण या जगत।
सा घंटा पातु नो देवि पापेभ्योऽन: सुतानिव।।

बाधा शान्ति के लिए :-
सर्वाबाधाप्रशमनं त्रेलोक्यस्याखिलेश्वरी। एवमेव त्वया कार्यमस्मद्वैरिविनाशनम्।।

सुलक्षणा पत्नी की प्राप्ति के लिए :-
पत्नी मनोरमां देहि मनोवृतानुसारिणीम्। तारिणी दुर्गसंसारसागरस्य कुलोद्भाम।।

आरोग्य और सौभाग्य प्राप्ति के लिए :-
देहि सौभाग्यमारोग्यं देहि मे परमं सुखम्।
 रूपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि।।

महामारी नाश के लिए :-
जयन्ती मंगला काली भद्रकाली कपालिनी।
 दुर्गा क्षमा शिवाधात्री स्वाहा स्वधा नमोऽस्तुते।।

रोग से छुटकारा प्राप्ति के लिए :-
रोगानशेषानपहंसि तुष्टा रुष्टा तु कामान् सकलानभीष्टान।
त्वमाश्रितानां न विपन्नराणां त्वमाश्रिता हा्राश्रयतां प्रयन्ति।।

रक्षा प्राप्ति के लिए :-
शूलेन पाहि न देवि पाहिखड्गेन चाम्बिके।
 घंटास्वनेन न: पाहि चापज्यानि: स्वनेन च ।।

शक्ति प्राप्ति के लिए :-
सृष्टिस्थितिविनाशानां शक्तिभूते सनातनि।
 गुणाश्रये गुणमये नारायणि नमोऽस्तुते।।


प्रसन्नता प्राप्ति के लिए :-
प्रणतानां प्रसीद त्वं देवि विश्वार्तिहारिणी। त्रैलोक्यवासिनामीडये लोकानां वरदा भव।।

विद्या प्राप्ति के लिए :-
विद्या: समस्तास्तव देवि भेदा:
 स्त्रिय: समस्ता : सकला जगत्सु।
त्वयैकया पूरितमम्बयैतत् का ते स्तुति: स्तव्यपरा परोक्ति।।

दारिद्र व दु:ख निवारण के लिए :-
दुर्गे स्मृता हरसि भीतिमशेषजन्तो: स्वस्थै: स्मृता मतिमतीव शुभां ददासि।
दारिद्रयदु:खभयहारिणि का त्वदन्या सर्वोपकारकरयणाय सदाऽऽर्द्रचिता।।

सब प्रकार के कल्याण के लिए :-
सर्वमंगलमांगल्ये शिवे सर्वार्थसाधिके। शरण्ये त्र्यम्बके गौरि नारायणि नमोऽस्तुते।।

बाधामुक्त होकर धन पुत्रादि की प्राप्ति के लिए :-
सर्वाबाधाविनिर्मुक्तो धन धान्यसुतान्वित:।
 मनुष्यो मत्प्रसादेन भविष्यति न संशय:।।

पाप नाश तथा भक्ति की प्राप्ति के लिए:-
नतेभ्य: सर्वदा भक्तया चण्डिके दुरितापहे।
 रूपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि।।

स्वर्ग और मोक्ष की प्राप्ति के लिए:-
सर्वभूता यदा देवी स्वर्गमुक्तिप्रदायिनी। त्वं स्तुता स्तुतये का वा भवन्तु परमोक्तय:।।

विविध उपद्रवों के बचाव के लिए:-
रक्षांसि यत्रोग्रविषाश्च नागा यत्रारयो दस्युबलानि यत्र।
दावानतो यत्र तथाब्धिमध्ये तत्र स्थिता त्वं परिपासि विश्वम्।।

समस्त बाधाओं का नाश एवं देवि की शरणागति के लिए :-
इत्थं यदा यदा बाधा दानवोत्था भविष्यति।
 तदा तदावतीर्याहं करिष्याम्यरिसंक्षयम्।।

विश्व की रक्षा के लिए :-
या श्री: स्वयं सुकृतिनां भवनेष्वलक्ष्मी: पापात्पनां कृतधियां हृदयेषु बुद्धि:।
श्रद्धा सतां कुलजनप्रभवस्य लज्जा तां त्वां नता: स्म परिपालय देवि विश्वम्।।

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