सूर्य देव
-------------------------------------------------------------
ऋग्वेद के अनुसार सौर मंडल के अन्त: स्थित सूर्य देव सबके प्रेरक, अन्तर्यामी और परमात्म स्वरूप हैं। ये ही समस्त स्थावर व जंगम के कारण हैं। सूर्यदेव सम्पूर्ण ग्रहों के राजा हैं। साम्ब पुराण के अनुसार- सूर्य की हजारों रश्मियों में से 300 रश्मियां पृथ्वी पर, 400 चन्द्रमस- पितृलोक पर तथा 300 देवलोक में प्रकाश फैलाती है। रश्मि के साथ सूर्य तेज का प्रकाश तथा अग्नितेज की ऊष्मा के परस्पर मिश्रण से ही दिन बनता है। केवल अग्नि की ऊष्मा के साथ सूर्य का तेज मिलने पर रात्रि होती है।
ऋग्वेद के अनुसार-
सूर्य देवता का रंग लाल है। इनका वाहन रथ है। इनका रथ वेदस्वरूप है। इनके रथ में एक ही चक्र है जो संवत्सर कहलाता है। इस रथ में मासस्वरूप बारह अरे हैं। ऋतु रूप छ:ह नेमियां है और तीन चौमासे रूप में तीन नाभियां हैं। इसकी पुष्टि श्रीमद् भागवत गीता (5। 21। 13) में भी की गई है। इस रथ में अरूण नामक सारथि ने गायत्री आदि सात छन्दों के सात घोड़े जोत रखे हैं। (ऋग्वेद 1। 105। 31) सारथि का मुख भगवान सूर्य की ओर रहता है। भगवान सूर्यनारायण का गोत्र कश्यप है।
सूर्य परिवार - भगवान सूर्य की दो पत्नियां है। संज्ञा और निक्षुमा। संज्ञा को ही सुरेणु, राखी, द्यौ, त्वाष्ट्री एवं प्रभा भी कहा जाता है जबकि निक्षुमा को छाया भी कहा जाता है। संज्ञा विश्वकर्मा त्वष्टा की पुत्री है। संज्ञा से वैवस्वतमनु, यम, यमुना, अश्विनी कुमार और रैवन्त तथा छाया से शनि, तपती, विष्टि और सावर्णिमनु नामक संतान हुए। दिण्डि इनके मुख्य सेवक हैं।
सूर्य की शक्तियां :- अग्नि पुराण के अनुसार इनकी कुल 12 शक्तियां हैं जिनके नाम क्रमश: इड़ा, सुषुम्ना, विश्वर्चि, इन्दु, प्रमर्दिनी, प्रहर्षिणी, महाकाली, कपिला, प्रबोधिनी, नीलाम्बरा, घनान्त: स्था और अमृता है।
सूर्यदेव के अस्त्र-शस्त्र :-
चक्र, शक्ति, पाश, अंकुश। सूर्यदेव की दो भुजाएं हैं। वे अपने रथ पर जो सात घोड़ों व सात रस्सियों से जुड़े रहते हंै उसपर कमल आसन पर विराजमान रहते हैं।
सूर्य की वक्र दृष्टि से:-बुखार, कमजोरी, दिल का दौरा, चर्मरोग, आंख संबंधी बीमारी, हिस्टीरिया आदि की संभावना बनती है।
सूर्यदेव सिंह राशि का स्वामी हैं। इनकी कृपा प्राप्ति के लिए दो मार्ग बताए गए हैं।
1 वैदिक, 2 तांत्रिक
वैदिक रूप से जप किया जाने वाला मंत्र है: -
'पद्मासन: पद्मकर: पद्मगर्भ: समद्युति:।
सप्ताश्व: सप्तरज्जुश्च द्विभुज: स्यात् सदा रवि:।।
Ó मत्स्य पुराण-94
तांत्रिक रूप से जप किया जाने वाला मंत्र है: -
'उं ह्रीं ह्रीं सूर्याय नम:।Ó
जपसंख्या- 28 हजार। इसका दशांश (2800) तर्पण, इसका दशांश (280) मार्जन हवन करना चाहिए।
व्रत-रविवार का व्रत करना चाहिए। न चले तो रविवार को कम से कम नमक नहीं खाएं। सूर्य देव पर ताम्र के बर्तन से जल अर्पित करें, लाल पुष्प चढ़ाएं, लाल चंदन का प्रयोग करें।
रत्न-माणिक्य धारण करें अथवा बिल्वपत्र वृक्ष की जड़ को विधिपूर्वक लाकर उसे गंगा जल से धोकर अभिशिक्त कर लाल कपड़े में बांधकर लाल धागे में रविवार को बांह या गले में धारण करें।
-------------------------------------------------------------
ऋग्वेद के अनुसार सौर मंडल के अन्त: स्थित सूर्य देव सबके प्रेरक, अन्तर्यामी और परमात्म स्वरूप हैं। ये ही समस्त स्थावर व जंगम के कारण हैं। सूर्यदेव सम्पूर्ण ग्रहों के राजा हैं। साम्ब पुराण के अनुसार- सूर्य की हजारों रश्मियों में से 300 रश्मियां पृथ्वी पर, 400 चन्द्रमस- पितृलोक पर तथा 300 देवलोक में प्रकाश फैलाती है। रश्मि के साथ सूर्य तेज का प्रकाश तथा अग्नितेज की ऊष्मा के परस्पर मिश्रण से ही दिन बनता है। केवल अग्नि की ऊष्मा के साथ सूर्य का तेज मिलने पर रात्रि होती है।
ऋग्वेद के अनुसार-
सूर्य देवता का रंग लाल है। इनका वाहन रथ है। इनका रथ वेदस्वरूप है। इनके रथ में एक ही चक्र है जो संवत्सर कहलाता है। इस रथ में मासस्वरूप बारह अरे हैं। ऋतु रूप छ:ह नेमियां है और तीन चौमासे रूप में तीन नाभियां हैं। इसकी पुष्टि श्रीमद् भागवत गीता (5। 21। 13) में भी की गई है। इस रथ में अरूण नामक सारथि ने गायत्री आदि सात छन्दों के सात घोड़े जोत रखे हैं। (ऋग्वेद 1। 105। 31) सारथि का मुख भगवान सूर्य की ओर रहता है। भगवान सूर्यनारायण का गोत्र कश्यप है।
सूर्य परिवार - भगवान सूर्य की दो पत्नियां है। संज्ञा और निक्षुमा। संज्ञा को ही सुरेणु, राखी, द्यौ, त्वाष्ट्री एवं प्रभा भी कहा जाता है जबकि निक्षुमा को छाया भी कहा जाता है। संज्ञा विश्वकर्मा त्वष्टा की पुत्री है। संज्ञा से वैवस्वतमनु, यम, यमुना, अश्विनी कुमार और रैवन्त तथा छाया से शनि, तपती, विष्टि और सावर्णिमनु नामक संतान हुए। दिण्डि इनके मुख्य सेवक हैं।
सूर्य की शक्तियां :- अग्नि पुराण के अनुसार इनकी कुल 12 शक्तियां हैं जिनके नाम क्रमश: इड़ा, सुषुम्ना, विश्वर्चि, इन्दु, प्रमर्दिनी, प्रहर्षिणी, महाकाली, कपिला, प्रबोधिनी, नीलाम्बरा, घनान्त: स्था और अमृता है।
सूर्यदेव के अस्त्र-शस्त्र :-
चक्र, शक्ति, पाश, अंकुश। सूर्यदेव की दो भुजाएं हैं। वे अपने रथ पर जो सात घोड़ों व सात रस्सियों से जुड़े रहते हंै उसपर कमल आसन पर विराजमान रहते हैं।
सूर्य की वक्र दृष्टि से:-बुखार, कमजोरी, दिल का दौरा, चर्मरोग, आंख संबंधी बीमारी, हिस्टीरिया आदि की संभावना बनती है।
सूर्यदेव सिंह राशि का स्वामी हैं। इनकी कृपा प्राप्ति के लिए दो मार्ग बताए गए हैं।
1 वैदिक, 2 तांत्रिक
वैदिक रूप से जप किया जाने वाला मंत्र है: -
'पद्मासन: पद्मकर: पद्मगर्भ: समद्युति:।
सप्ताश्व: सप्तरज्जुश्च द्विभुज: स्यात् सदा रवि:।।
Ó मत्स्य पुराण-94
तांत्रिक रूप से जप किया जाने वाला मंत्र है: -
'उं ह्रीं ह्रीं सूर्याय नम:।Ó
जपसंख्या- 28 हजार। इसका दशांश (2800) तर्पण, इसका दशांश (280) मार्जन हवन करना चाहिए।
व्रत-रविवार का व्रत करना चाहिए। न चले तो रविवार को कम से कम नमक नहीं खाएं। सूर्य देव पर ताम्र के बर्तन से जल अर्पित करें, लाल पुष्प चढ़ाएं, लाल चंदन का प्रयोग करें।
रत्न-माणिक्य धारण करें अथवा बिल्वपत्र वृक्ष की जड़ को विधिपूर्वक लाकर उसे गंगा जल से धोकर अभिशिक्त कर लाल कपड़े में बांधकर लाल धागे में रविवार को बांह या गले में धारण करें।
No comments:
Post a Comment